A lot can happen over coffee…


‘तुझे पता है, 30s की जो औरतें होती हैं ना, वो खुद को बहुत ही असुरक्षित महसूस करती हैं। ऑप्शन बहुत मिलते नहीं इस वक्त तो ऐसे में उन्हें लगता है कि जो भी मिल रहा है, उसके साथ ही हो लो। ये जो असुरक्षा की भावना होती है ना, शायद इस वक्त धीरे धीरे बढ़ने लगती है।‘

एक कॉफी हाउस में मानसी ने अनाया को समझाने की कोशिश की। दोनों गहरी दोस्त थीं और दोनों ने ही शादी नहीं की थी। अब ये च्वाइस के साथ था या फोर्स के साथ, नहीं बताया जा सकता, पर थी दोनों लाइफ पार्टनर के बिना। अनाया एक प्राइवेट फर्म में काम करती थी और अपने मां बाप और एक भाई के साथ रहती थी पर मानसी की ज़िंदगी में कई उलझनें थीं। परमानेंट नौकरी नहीं, कोई बेहद करीबी दोस्त नहीं, सबके साथ निभा लें या कोई भी पसंद आ जाए, ऐसा भी कोई हिसाब नहीं था।

अनाया ने चाय की चुस्की लेते हुए कप टेबल पर रखा और मानसी को देखने लगी। ‘फिर कुछ हुआ है क्या तेरी ज़िंदगी में?’ अनाया ने मानसी की तरफ देखते हुए पूछा।

‘नहीं, मुझे सब पता है कि मेरी ग़लती कहां है, पर मैं उसे ठीक क्यों नहीं कर पाती। ये दिल के मामले में इतनी बेबस और लाचार क्यों हो जाती हूं मैं?’- मानसी ने अपने आंसू पोंछते हुए कहा। अनाया समझ गई थी कि मानसी के दिल ने फिर से उसी दरवाज़े को ही खटखटाया है, जो उसके लिए एक लंबे समय से नहीं खुल रहा है और साथ ही साथ एक बेइज़्ज़ती का एहसास भी देता है।

‘तू पागल हो चुकी है…हर बार एक ही ग़लती करने का क्या मतलब है? ग़लती करनी है तो कर, पर उसमें कुछ तो नयापन हो। मैं थक गई तेरी ग़लतियों को सुन सुन कर। इतनी बड़ी बड़ी बातें करती है, एक्शन में कुछ क्यों नहीं लाती अपने? मैंने भी ग़लतियां की हैं पर तेरी तो कुछ अलग ही है।’ अनाया मानसी को गुस्से में समझाने लगी।

दोनों ख़ास सहेलियां मालूम हुईं…एक दूसरे की राज़दार जैसी। आज वक्त मानसी का अलग चल रहा था तो अनाया ने गुरु माता बनकर उसको समझाया। अनाया जब रोती जब मानसी उसे कंधा देती। मुझे इतनी सारी बातें इसलिए पता क्योंकि मैं पीछे वाली टेबल पर बैठकर दोनों की बातें सुन रही थी। रहा नहीं गया तो उठकर दोनों के पास चली ही गई। थोड़ी झिझक के साथ बातें शुरु हुई और फिर होती ही चली गई।

मेरे पास कहने के लिए कुछ था नहीं, सिवाए उन लोगों के बारे में, जिनकी ज़िंदगी मैंने करीब से देखी थी या देख रही थी। मेरे नीचे वाली भाभी के पति गुज़र गए थे कम ही उम्र में। सबने कहा कि बिंदी या बिछिया मत पहनना अब। पड़ोस वाली आंटी की बेटी अपने पति से अलग हो गई थी और उसको 1 साल तक घर से बाहर निकलने के लिए मना कर दिया गया था। मेरे हॉस्टल में एक मैम थीं। शादी नहीं की थी उन्होंने तो उनका नाम कई सर के साथ जुड़ता रहता था। एक सीनियर मैम तो ऐसी भी थीं, जिनके पति की दूसरी बीवी के किस्से आते रहते थे और सब उनको बेचारगी की नज़र से देखते थे। क्या फर्क पड़ता है इन सारी बातों का हमारी ज़िंदगी पर?  क्या वो चलना बंद कर दें या शिकायतों के जाल में खुद ही फंसी रहे? अपने निर्णय को निभा पाने की या उनके साथ चल पाने की हिम्मत तो हमें खुद ही जुटानी होगी ना। पिताजी कहते हैं कि दुनिया में हर तरह के लोग रहते हैं और उनके बीच में खुद को स्थापित करना ही ज़िंदगी है। मुस्कुराना और फिर से सज संवर कर एक नए दिन के लिए तैयार होने का अपना ही मज़ा है। अनाया और मानसी को जो समझना था, वो उन्होंने समझा ही होगा, ऐसा मेरा विश्वास है। कहते हैं कि a lot can happen over coffee…शायद उन दोनों की ज़िंदगी में भी कुछ हुआ हो उसके बाद….

मैं वैसे किसी को समझा नहीं पाती। कई बार मानसी की तरह समझ भी नहीं पाती…जैसे तुम्हारे जाने की बात आज तक मेरी समझ से परे है।

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