कुछ समझ में ही नहीं आ रहा है कि क्या पहनूं इस बार…मैं रि-यूनियन में जा रही हूं अपने। वहां इवेंट भी मुझे होस्ट करना है अकेले…कुछ तो बताओ तुम लोग मुझे..
कुछ चिड़चिड़ी होकर मैंने अपनी बहनों से पूछा। बड़ी दीदी ने गाउन कहा तो छोटी वाली ने सूट। मैं कंफ्यूज़न मैं वैसे ही अपने घर आ गई। घर पहुंचने के कुछ ही घंटो बाद बड़ी दीदी का फोन आया कि सूट ही पहन, जो अभी शादी में खरीदा था। भारी है..नहीं यार, सूट नहीं…गर्मी लगेगी…ऐसे ना नुकुर के बाद मैं फाइनली सूट को फाइनल कर चुकी थी।
जा रही थी उन तमाम लोगों से मिलने, जिनमें से कुछ को मैं पर्सनली जानती थी, कुछ को फेसबुक के ज़रिए और कुछ ऐसे भी लोग थे, जिन्हें महसूस करती तो उनसे बिना मिले ही ऐसा लगता था कि जाने कबसे जान रही हूं। जाने वाली रात मैं सो नहीं पाई और तुम हैरान होते रहे कि मुझे हो क्या गया है। मैं तुम्हें भी तो सोने नहीं दे रही थी ना। बच्चों को खाना खिलाकर दूसरे कमरे में भेज दिया जिससे तुमसे बातें कर पाऊं। 2 दिन के लिए तुम्हें छोड़कर जाना था, तो कोशिश यही थी कि रात भर तुमसे बात करके उसका कोटा पूरा कर सकूं।
सुबह हुई, मैं स्टेशन पहुंची और पूरे शोर शराबे के साथ ट्रेन से उस दूरी को मिटाया, जिसके बाद सिर्फ मस्ती थी। हां…हम सब मिलने वाले थे, जो किसी ना किसी रुप में एक दूसरे से जुड़े थे। ये धमाल था…जहां सिर्फ पागलों की तरह हंसना होता है…गप्पें लड़ानी होती हैं…मस्ती करनी होती है…फोटो खिंचवाना होता है…मन में एक दूसरे को देखकर थोड़ा सा जलना और सामने तारीफ करनी होती है। स्वागत जोरदार था। कुछ मासूम लोग फंसे हैं इसके चक्कर में, जो हर साल इसको ऑर्गनाइज़ करते हैं। जब पहुंची तो देखा कि एक बहुत रॉयल सा पैलेस है। अपूर्व, शुची, दीपक, दीपिका, विभा, शिल्पा…जाने कितने ही चेहरे घूम गए आंखों के आगे। याद तो तुम भी आ गए। साथ आते तो तुम्हें भी अच्छा ही लगता।
2 दिन बिताने थे हम सबको साथ…कुछ लोग बहुत सीनियर थे उम्र में…मेरी मां से भी बड़े, पर उनको दीदी कहने में बहुत मज़ा आ रहा था। पहली बार लगा कि कितनी भाग्यशाली हूं मैं, जो इतने सारे लोगों का इतना प्यार मिल रहा है। नाच-गाना सब कुछ था। यकीं नहीं करोगे तुम, पर फैशन शो भी हुआ इस बार। मतलब तुम ऐसा सोच लो कि पहली रात तो बस दबी हुई तमन्नाओं को पूरा करने की रात थी। सबने वो सब कुछ किया, जो शायद ऐसे कभी ना कर पाएं।
हम वहां भी गए, जिस जगह ने हम सबको मिलवाया। हां, अपनी यूनिवर्सिटी को फिर से देखना अच्छा लगा। बहुत कुछ बदला था, जिसे देखकर खुशी हुई। कुछ पुराने टीचर्स भी मिले। खाने में भी वो तमाम चीज़ों को शामिल किया गया, जिस पर हम सब मरते थे। रात को एक लंबी वॉक पर भी गई किसी के साथ। सब कुछ बस होता जा रहा था अपने आप और मैं सब कुछ समेटते जा रही थी। सोचती हूं तो लगता है कि सब कुछ अलग था। वो चलना, पहनना, बातें करना, हंसना, गुस्सा दिखाना, खाना, घूमना…समझती हूं कि ज़िंदगी के हसीन पल भला किसे कहते हैं… वहां जाकर ‘घनी बावरी’ होने का जो एहसास मिला, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।
ये यादें भी कितनी अजीब होती हैं ना। कुछ से हम पीछा छुड़ाना चाहते हैं तो कुछ को हमेशा के लिए दिल में सहेजना।
तुम्हारी यादों के साथ मैं वहां थी…वहां की यादों के साथ अब तुम्हारे पास हूं…