वो सात घंटे…


‘एक्सक्यूज़ मी…दैट्स माय सीट’

मीरा रात के 2.30 बजे से दिल्ली एयरपोर्ट पहुंची हुई थी, इसलिए फ्लाइट के अंदर बैठते ही उसकी आंखें अपने आप ही बंद होने लगी थी। अभी झपकी लगी ही थी कि तभी वो एक भारी सी आवाज़ मीरा के कानों में आई। आंखें खोल कर देखा तो एक गोरा चिट्टा अंग्रेज़ उसके सामने खड़ा था।

‘ओह यस’….हड़बड़ा कर वो नींद में ही उठी, वो विंडो सीट पर बैठ गया। मीरा भी अपनी सीट पर बैठी और बैठते के साथ ही वो फिर से नींद की आगोश में थी।

‘एक्सक्यूज़ मी मैम…व्हाट विल यू हैव? वेज और चिकेन?’ – एक बार फिर से आवाज़ आई। मीरा ने आंखें खोल कर देखा तो ब्रेकफास्ट आ चुका था। नींद में ज़रा सी आंख खोल कर उसने कहा कि चिकन और वापस आंखें बंद कर ली। 5-7 मिनट बाद उठी और आंखें मलते हुए इधर उधर देखने लगी। उसके पास वाला अंग्रेज़ स्लीप आई मास्क लगाकर पूरी तरह नींद में डूबा हुआ था। डिनर तक के लिए नहीं उठा। शूज़ खोलकर घोड़े बेच कर सो रहा था वो। मीरा ने उसको देखा, जगाने का सोचा…पर फिर वो चुपचाप अपना ब्रेकफास्ट करने लगी। मीरा की नींद का आलम ये था कि नाश्ता करके वो वापस सो गई।

किसी पहर वो नींद में ही डरी और उसकी आंख हल्की खुली। उसने उस आधी नींद में ये महसूस किया कि उसका सर अंग्रेज़ के कंधे पर जा चुका था और उसकी हथेली को वो हल्के से थपथपा रहा था, जैसे नींद में जागते बच्चे को वापस थपकी देकर सुला दिया जाता है। हां…वो शायद मीरा को डरा समझ कर संभालने की कोशिश कर रहा था।

ऐसे मौके पर एक सामान्य लड़की की जो हालत होती होगी, वही मीरा की थी। वो डर के मारे झटके से उठी और लगभग अपनी सारी सांसे रोक कर बैठ गई। पास वाले अंग्रेज़ की आंखें अभी भी बंद थीं। मीरा अपनी सांसों को संभालने की कोशिश कर ही रही थी कि उस बंदे ने अपनी आंखों को बिना खोले मीरा की हथेलियों को वापस अपनी हथेलियों में लिया और कहा कि डोंट वरी…डोंट अफ्रेड…आई एम हियर…यू कैन स्लीप। मीरा अपनी गिरती पड़ती सांसों को संभालती बिना कुछ समझे वैसी ही बैठी रही। वो अंग्रेज़ मीरा की हथेली को धीरे धीरे से सहलाता हुआ सो रहा था।

कुछ छुअन के एहसास ऐसे होते हैं, जो आपको सुकुन देते हैं। जिसमें वासना महसूस नहीं होती…एक शांती की अनुभूति होती है। मीरा को भी वो छुअन ऐसी ही महसूस हुई। वो 5 मिनट तक यूं ही बैठी रही और जाने क्या सोच कर वापस उस बंदे के कंधे पर सर रखा और सो गई।

दोनों ही गहरी नींद में सोए हुए थे कि अचानक फ्लाइट में हुए एक एनाउंसमेंट ने दोनों को जगा दिया। मीरा आंख मलती उठी। दोनों की आंखें मिलीं। मीरा जहां एक शर्म और हिचक के साथ मुस्कुराई, वहीं उस अंग्रेज़ की आंखों में एक सादगी भरी मुस्कुराहट थी।

‘डिड यू स्लीप वैल?’ उसने मीरा को देखते हुए पूछा। मीरा ने बालों को कान के पीछे ले जाते हुए, ज़रा सी नज़रो को उठाकर हां में जवाब दिया। ‘टुमको नींड में धर लगता ऐ’- जैसे ही उस बंदे ने मीरा से ये बात पूछी, वैसे ही मीरा ने उसको चौंक कर देखा और पूछा – ‘तुमको हिन्दी आती है?’ उसने हंसते हुए कहा – ‘तोड़ा तोड़ा’। मीरा उसकी बातों को सुनकर मुंह पर हाथ रखकर हंसने लगी।

‘हे, व्हाट इज़ दिस’? उसने मीरा की हाथों पर बने टैटू को देखकर पूछा। मीरा हंसते हुए उसे अपना हाथ दिखाने लगी। ‘इट्स फ्री बर्ड’ – कहते  हुए मीरा ने उसे टैटू दिखाया।

‘ओह वॉव…दैट्स ग्रेट। व्हॉट्स योर नेम बाई द वे?’

मीरा…एंड योर्स?

‘आई एम औल्सो ए फ्री बर्ड…’ कहते हुए वो हंसा। मीरा उसको देखने लगी। ‘माई नेम इज़ शहाफ़। डू यू नो द मीनिंग ऑफ शहाफ़?’ वो मीरा को देखते हुए पूछने लगा। मीरा ने ना में सर हिलाया। तब पहली बार मीरा को पता चला कि समुद्र के ऊपर उड़ती वो सफ़ेद चीड़िया को भी शहाफ़ कहते हैं, जिसका मतलब फ्री बर्ड ही होता है। वो दोनों ही एक दूसरे को देखकर हंस रहे थे, जैसे दोनों ने ही एक दूसरे में अच्छा सा अर्थ ढूंढ लिया हो। पूरा सफर एक दूसरे के हाथों को थाम कर उन्होंने पूरा किया था।

फाइनली फ्लाइट रुकी। दोनों साथ ही उतरे। शहाफ़ की कनेक्टिंग फ्लाइट थी, तो उसके एयरपोर्ट पर ही 2 घंटे का इंतज़ार करना था। मीरा के घरवाले उसको लेने आ चुके थे, तो उसको जाना ही था।

‘कैन आई हैव योर नंबर?’ शहाफ़ ने मीरा से पूछा।

‘नो…’ – मीरा ने एक मुस्कुराहट के साथ मना किया।

‘देन टेक माइन’ – शहाफ़ ने फिर से कहा।

मीरा ने फिर स्माइल दिया और ना में सर हिलाया।

‘देन टेक माई ईमेल एड्रेस एटलिस्ट’ – शहाफ़ ने मीरा को देखते हुए कहा।

‘यू टेक माइन’ – मीरा ने जाने क्या सोचते हुए कहा।

‘ओके’ – शहाफ़ ने फटाक से पेपर पेन निकाला और मीरा का ईमेल एड्रेस नोट किया।

दोनों साथ ही बाहर आए। मीरा ने शहाफ़ को घरवालों से मिलवाया और बाय कहकर जाने लगी। अभी मीरा शहाफ़ से 10 कदम की ही दूरी तक गई होगी कि शहाफ़ ने मीरा को पीछे से आवाज़ लगाई। मीरा वापस चल कर आई और पूछा – ‘व्हाट हैपेन?’

शहाफ़ ने मीरा की आंखों में देखते हुए कहा – ‘वॉन्ट टू हग यू। मे आई?’  मीरा ने स्माइल के साथ हां में सर हिलाया। दोनों एक दूसरे के गले लगे।

‘आई वॉज़ सो कंफर्टेबल विथ यू…डोन्ट नो वाय…थैंक्स। विल मिस यू’ – शहाफ़ ने ये कहकर मीरा को अलग किया। दोनों ने एक दूसरे को देखा…एक दूसरे के होठों को चूमा….और आंखों में अनजाने भाव के साथ अलग हो गए। उन 7 घंटे के उड़ते हुए सफर में दोनों का मन कहां उड़ा एक साथ, बता पाना या समझा पाना मुश्किल ही होगा…

तुमने भी मुझसे मेरा नंबर मांगा था और मैंने नहीं दिया था, पर फिर भी देखो ना, ना हम केवल मिले, बल्कि पूरे 15 साल से हम जीवनसाथी हैं। क्या पता, शहाफ़ और मीरा की ज़िंदगी भी हमारी जैसी ही हो…

आमीन!

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