ऐ, देखो बड़ा वाला आ रहा है…


‘एक रात की थीम अपन ब्लैक ड्रेस कर सकते हैं…सिर्फ बहनें बहनें…बड़ों को नहीं बताएंगे…क्या बोलते हो तुम सब?’ बड़ी बहन ने पूरे उत्साह के साथ व्हॉट्स ऐप पर मैसेज भेजा। सारी बहनों ने एक साथ अपनी स्वीकृति दे दी थी। ‘तेरे पास तो है ना ब्लैक ड्रेस’- दीदी ने मेरे बालों में हाथ फेरते हुए मुझसे पूछा। मैंने इतर कर हां में सर हिलाया। शादी की सालगिरह पर तुमने जो फ्रॉक लाकर दी थी, वो अब भी मैंने सहेज कर रख रखी थी।

तुम उधर छ: महीने के लिए अपने प्रोजेक्ट पर बाहर गए और इधर पूरे परिवार ने मिलकर एक ट्रिप प्लान कर लिया। पूरा परिवार जोश में था। दीदी के बच्चे तो बस पूछो मत। पगलाए हुए से दिन भर शोर करते रहते थे। पिताजी की प्लानिंग थी, तो किसी भी तरीके की तकलीफ की कोई गुंजाइश भी नहीं बची थी।

गिनते गिनते वो दिन भी आ गया, जब सब पिताजी के घर पहुंच गए। अगले दिन भोर में ही ट्रेन थी तो तुम सोच सकते हो कि रात भर भला किसको नींद आई होगी। ऑफिस के पहले दिन जिस तरीके की समय पाबंदी होती है, कुछ वैसे ही समय के पाबंद थे उस दिन घरवाले। बच्चों से लेकर बड़ों तक….सब समय से पहले तैयार थे स्टेशन जाने के लिए। तुम्हें तो पता ही है हमारे परिवार की लंबाई-चौड़ाई। पूरा एक कस्बा है अगर साथ चले तो। खैर, हम स्टेशन भी पहुंचे…ट्रेन में बैठ भी गए और हंगामा करते हुए वहां भी पहुंच गए, जहां के लिए इतने दिनों से आंखों ने सपने सजा रखे थे।

गांव जैसी जगह थी, जहां पतली संकरी गलियों से होते हुए हम पहुंचे थे। सड़क जहां खत्म होती थी, वहीं पर हमारा आशियाना था, जहां हम सबको तीन दिन गुज़ारने थे। यू शेप में छ: रुम थे। सोने से पहले एक दूसरे का चेहरा देखो और सुबह उठते ही फिर से एक दूसरे के दर्शन करो।

सुबह छोटी बहन सबसे पहले उठ गई और उसने सबका दरवाज़ा पीट कर उठाना शुरु किया। सब जोश में धीरे धीरे उठ ही गए और जो नहीं उठ पाए, वो पूरे दिन अफसोस में रहे। तुम सोच नहीं सकते कि जहां सड़क खत्म हो रही थी, उसके बाद दूर दूर तक कितना प्यारा समंदर था। जहां तक नज़रें फैलाओ, पानी ही पानी दिखता था। हम सबने काफी छप छप किया। तीन दिनों तक सिलसिला कुछ यूं ही बरकरार रहा कि सुबह जल्दी नाश्ता करके निकलते, वॉटर स्पोर्ट्स करते, पूरे दिन बस पानी में डूबे रहते और रात को थक कर रूम में लौटते और भूखे भेड़िये की तरह खाने पर टूटते।

बुआ, चाची, माई, अम्मा…सब थे…सब….और सबके सब उन्मुक्त चिड़िया की तरह उड़ कर मस्ती कर रहे थे। सब पानी में घुस जाते। कई लोगों को डर भी लगता था पर जोश इतना कि जब भी बड़ी लहर आती तो सब कहते कि ‘ऐ…देखो…बड़ा वाला आ रहा है’। हां, मैं जानती हूं, तुम होते तो कहते कि ‘लहर आ रही है’ होगा, ना कि ‘लहर आ रहा है’। छोड़ो ना ये मात्राओं का ज्ञान…खुश रहने का पाठ जो इस सफर में मिल रहा था, वो बाकी किसी भी ज्ञान से ज़्यादा था। डरने वाले लोग भी हवा में उड़े, पानी के अंदर गए…क्या नहीं किया। गॉगल्स, हैट का तो हमने बाज़ार लगा रखा था।

हां, वो ब्लैक ड्रेस थीम वाली रात भी काफी सही सी थी। सज संवर कर सब थिरके थे। बड़े जीजाजी, जो शांत स्वभाव के थे, उन्होंने भी दीदी को दीदी की भाषा में इश्क जताया। तुम होते, तो वो सालसा तो ज़रुर ही होता, जो तुम्हारे भतीजे की शादी में हमने किया था। दिन तीन ही थे…पर लगा कि उन तीन दिनों में ही कई सपनों को पूरा कर लिया।

वैसे इस बीच लड़ाईयां भी हुईं। अरे, डरो नहीं। ये हार-जीत की क्षणिक लड़ाई थी। घर के पुरुष वर्ग ने बॉली बॉल का मैच खेला। बच्चे तो बच्चे, बड़े तक उलझ गए थे मैच में। छोटी बहन रैफरी बनी थी, तो हार का ठीकरा भी उसके सर गया और जीत को टीम का टैलेंट बताया गया। कुछ भी कहो…उस खेल में सब जवान थे।

वो तीन दिन यूं चुटकी में बीत गए। थक कर भी हम सब फ्रेश हो गए थे। लौटने का सफर भी बहुत रोमांचित रहा। टी.टी. से भी जमकर लड़ाई हुई। मैं भी उलझ पड़ी थी, ठीक वैसे ही जैसे कॉलेज में उस लड़के से उलझी थी, जिसने शीना के ऊपर भद्दा कमेंट कर दिया था।

इस बार ऐसे फैमिली ट्रिप में तुम भी रहना। इस बार हम दोनों मिलकर कहेंगे – ऐ, देखो बड़ा वाला आ रहा है…

14724-ocean-waves-1920x1200-beach-wallpaper

0 thoughts on “ऐ, देखो बड़ा वाला आ रहा है…

  1. बहुत कमाल का लिखती हैं आप। लिखते रहिए, आपको पढ़ना अच्छा लगता है

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *