‘जय गंगाजल’


बॉक्स ऑफिस पर आ चुकी है ‘जय गंगाजल’। प्रकाश झा के डायरेक्शन में बनी ये फ़िल्म 13 साल पहले आई ‘गंगाजल’ की सीक्वल है, जिसमें प्रियंका चोपड़ा हैं लीड रोल में। कहानी फ़िल्म की बिहार बैक ग्राउंड पर बेस्ड है। पूरी कहानी बिहार के बांकीपुर ज़िला के करप्ट एमएलए बबलू पांडे यानि मानव कौल और एस पी आभा माथुर यानि प्रियंका चोपड़ा के इर्दगिर्द घूमती है। आभा की पहली पोस्टिंग बांकीपुर ज़िले में होती है और वह इस ज़िले की पहली महिला एसपी है। बबलू पांडे और उसका भाई डब्लू पांडे यानि निनाद कामत अपने फायदे को लेकर किसानों की ज़मीन हड़पते हैं। बबलू पांडे के ख़िलाफ़ शुरु होती है आभा माथुर की लड़ाई, जिसमें अड़ंगे डालता है भोलानाथ सिंह यानि प्रकाश झा, जो कि एक करप्ट पुलिस वाले हैं। इन क्रिमिनल्स और पुलिस वाले के ख़िलाफ़ जाकर आभा की लड़ाई को देखने के लिए फ़िल्म देखिए।
फ़िल्म की कहानी कुछ नई नहीं है, पर ये प्रकाश झा का सिग्नेचर स्टाइल है। पहले वाली ‘गंगाजल’ में तेज़ाब पर फोकस किया गया था, तो ‘जय गंगाजल’ में सुसाइड को। एक्टिंग सभी ने अच्छी की है। स्टोरी कुछ ख़ास नहीं होते हुए भी फ़िल्म अच्छी लगती है क्योंकि एक ईमानदार पुलिस वाले के रोल में प्रियंका अच्छी लगती हैं। इस फिल्म से हमारे प्रकाश झा राइटर, डायरेक्टर एक्टर सब बन गए हैं। एक करप्ट पुलिस वाले के रोल में वो जमे हैं। बाद में जो उनके मन में द्वंद चलता है, उसको भी उन्होंने बखूबी दिखाया है। हालांकि कहीं कहीं वो कैमरा कॉंशियस भी लगे हैं। मानव कौल ने भी अपने रोल में जान डाली है तो निनाद भी अपनी एक्टिंग स्किल की छाप छोड़ गए हैं। मुरली शर्मा ने भी अच्छा काम किया है। इस फ़िल्म में उनकी अदाएं ज़रा हटकर हैं। अब मैं ऐसा क्यों कह रही हूं, ये फ़िल्म देखने के बाद आपको पता चल जाएगा।
डायरेक्शन की बात करूं तो इस जॉनर की फ़िल्में बनाने में प्रकाश झा एक्सपर्ट हैं, पर शायद इस बार वो एक्टिंग भी कर रहे थे, तो थोड़ा सा उनका डायरेक्शन डायवर्ट हो गया है। कहीं कहीं फ़िल्म बहुत स्लो लगती है। ‘मैं यहां टेबल कुर्सी पर बैठकर सलामी ठुकवाने नहीं आई हूं’ – ऐसे ही कुछ कुछ डायलॉग्स अच्छे हैं फ़िल्म में।
गंगाजल से तुलना करेंगे तो परेशानी होगी। अलग से इस फ़िल्म को देखिए। फ़िल्म को मिलते हैं 2.5 स्टार्स

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