मैं हूं…


जब बात बिगड़ जाए तो भौंहे चढ़ाना भी मुझे आता है और बात बनने पर गले लगाना भी। मैं घर बना भी सकती हूं और बिगाड़ भी। घर-बाहर, हर चीज की जिम्मेदारी डाली गई है मेरे कंधे पर। जिस पल मेरा ध्यान घर से हटा, वो बिखर गया और गर दुनियादारी छोड़ी, तो रिश्ते टूटे। हर रिश्तेदारों के सामने एक मुस्कुराहट के साथ आई हूं हमेशा। तुम्हारी बढ़ती व्यस्तता के बाद भी घर में हो रही उस कमी को पूरा किया है। मेरे बच्चे मेरे होने पर सुकून में रहते हैं और तुम एक निश्चिंतता के भाव में। किसी सामाजिक सुरक्षा के डर से नहीं बंधी मैं इस रिश्ते में। मैं बंधी हूं क्योंकि मैं बंधना चाहती हूं तुम्हारे साथ। तुम्हें क्या लगता है, तुम्हारे नए पनपे प्यार से मैं अनजान हूं? नहीं, वो शर्ट पर बिखरे बाल और रुमाल पर लगा लाल रंग देखा है मैंने, पर विश्वास करती हूं कि क्षणिक मोह में फंसे हो, निकल आओगे। कितना मुश्किल है कोर्ट में जाकर सफेद कागज की उन बिंदुओं पर हस्ताक्षर देना, पर ज्ञात है मुझे कि तब तुम बिखर जाओगे। तुम्हें संवारने का जो वादा किया था, वो निभा रही हूं मैं। पूछना खुद से कि गर मैं तुम जैसी बन जाऊं तो कितना और कब तक समझोगे मुझे। तुम्हारा जवाब ही तुम्हें जवाब देगा। नौकरी के लिए घर से बाहर कदम निकाल सकती हूं मैं, पर घर को वक्त देने के ख़्याल को मैं ज़्यादा तवज्जो देती हूं। नौकरी छोड़ कर मैं भी घर में आराम से बैठ सकती हूं, पर तुमको आर्थिक सहारा देने का फैसला लिया है मैंने। मैं एक बियाहता हूं…

शादी के ख़्वाब दिखाकर तुम रह सकते हो मेरे पास। तुम कुछ वक्त गुज़ारते हो और मैं उन लम्हों में अपनी पूरी ज़िंदगी देखती हूं। यह सच नहीं कि तुम्हारे सच का भान नहीं मुझे, पर यह भी सच है कि अपने होने पर भरोसा भी है। प्यार के नाम पर अय्याशी नहीं कर पाओगे कभी। तुम जब भी परेशान होकर मेरे पास आते हो तो अपने वक्षस्थल से तुम्हें लगाकर सुकून भी मैं ही देती हूं। तुम्हारी बियाहता ना होने के बाद भी मैं हर उस दर्द को समझती हूं, जिससे तुम गुज़रते हो। शराब पीने के बाद उठती हिचकियों में जाने कितनी बार सहारा दिया है मैंने तुम्हें। ये सब मेरी नादानी नहीं, मेरा प्यार है, जिसे तुम जैसा सतही व्यक्ति कई बार नहीं समझ पाता और खो देता है मुझे। सेक्स के लिए नहीं मैं तुम्हारे पास। ये राज़ की बात है कि बिस्तर पर तुम बहुत अच्छे नहीं। पैसों की चाहत में भी नहीं मैं बैठी। तुम्हें क्या पता कि तुम्हारे साथ के लिए और उस साथ में तुमको खुश रखने के लिए मैं अपना क्या क्या खर्च करती हूं। मैं तुम्हारे साथ हूं क्योंकि मैं तुमसे प्यार करती हूं। मैं एक प्रेयसी हूं…

पति नहीं है मेरे पास। हो चुका है तलाक़ मेरा या शायद वो मर गया है। क्यों मुझे वैश्या की नज़रों से देखते हो? बिना पति के रहने का ये मतलब तो हर्गिज़ नहीं कि मैं जिस्म के कारोबार में हूं। ऑफिस में तुम्हें क्यों लगता है कि मैं तुम पर चढ़कर सीढ़ियां चढ़ूंगी? सही बात तो ये है कि तुम बस मुझे पाना चाहते हो। हां, बिना शक के, सिर्फ मेरे जिस्म को क्योंकि तुम्हें भी पता है कि मेरे मन और मेरी रुह को पाना तुम्हारे बस की बात नहीं। मुझे अपने प्यार के झांसे में फंसा कर मत रखो। अपनी कीमत खुद कम करने में तुम्हें भला क्या मज़ा आता है? विश्वास दोगे, तभी विश्वास मिलेगा…चाहे मेरा या किसी और का। मेरे घर में जब मेरा बाप भी आता है तो मैं पढ़ती हूं तुम्हारी नज़रों को। तुम ‘वो’ नहीं जो ये जानने का हक रखे कि घर में आने वाले शख्स के साथ मेरा क्या रिश्ता है। मैं एक ‘अकेली’ हूं…

ज़िंदगी कभी किसी के लिए नहीं रुकती, मेरी भी नहीं रुकेगी और तुम्हारी भी नहीं रुकेगी पर यह बात तुम कब मानोगे कि मेरे जाने के बाद वो ज़िंदगी पहले जैसी भी नहीं रहेगी। कई बार तुमने मुझसे अलग होकर देखा, क्या हासिल कर पाए? टूटी तो मैं भी, पर संभल भी गई, पर तुम…हमेशा बिखरे ही रहे। । बिलखते हुए तुम्हारे अश्कों को हर बार पोछा है मैंने, आगे भी पोछूंगी। बस, इसे तुम मेरी कमजोरी मत समझो। इस सीने से लेकर उस सीने तक, छिपने की जगह हमेशा तुमने ढ़ूंढी है। मैं तुम्हें पाने के चक्कर में एक ऐसी औरत बन गई, जिसका ‘मेल रुप’ मुझे चाहिए था। मैं तुम्हारे साथ हूं, बिना किसी शर्त के। तुम भी कोई शर्त रखे बिना, कोई इल्ज़ाम धरे बिना रहो। प्यार के बदसूरत चेहरे के बारे में मैंने सुन रखा है, तुम उसे प्रमाणित मत करो। मार कर या गाली देकर कभी तृप्ती नहीं मिलेगी। जिस तरह मुझसे समर्पण का भाव चाहा है तुमने, वो खुद भी देकर देखो। अगर मेरा वो भाव तुम्हें सुकून देता है, तो तुम्हारा वो भाव, तुम्हें भी सुकून दोगा ही। मैं एक औरत हूं…

मुझे स्वीकार करो पूर्णतया…जैसे मैंने तुम्हें स्वीकार किया…पूर्णतया…मुझे किसी देवी के रुप में मत देखो। मुझे मेरे ही रुप में देख लो, मेरी ज़िंदगी के लिए वही सौगात होगी।

मैं बस ‘मैं’ हूं…

Sense of a Woman 4

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