होता है…


सुनो ना,

क्या सच में होता है ऐसा रिश्ता

बिना नाम के, बिना परिणाम के?

 

हां प्रिये,

होता तो है

अर्थ ही नहीं, पूरा भावार्थ छिपा रहता है इसमें

 

पर फिर लोगों का दिल और दिमाग

भला इसे स्वीकारता क्यों नहीं?

 

क्योंकि रुह अपनी हामी देती है

इसी हामी से बनती है हमारी कहानी

इसी से ‘अमर’ होता है ये रिश्ता…

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