तेरी यादों का वो फूल, जो ज़रा सा ही कली रुप में बढ़ा था, अब खिल कर फूल बनते जा रहा है। धूप, पानी, खाद…कुछ भी नहीं देती मैं। जाने प्रकृति की कौन सी शक्ति इसको सींच रही है? वो बाहरी ऊर्जा कौन सी है, मुझे ज्ञात नहीं। मैंने इस बढ़ते फूल को उठा कर एक कोने में रख दिया था। चाहती थी कि ये मुरझा जाए। इसका विकास मुझे नहीं चाहिए था, पर देखो ना…ऐसा हो ही नहीं रहा। ये बढ़ता ही जा रहा है, ना केवल बढ़ रहा है, बल्कि इसने मुझे कैद कर लिया है अपनी खुश्बू में।
हर दिन सुबह घर से जाते हुए ये अपने होने का एहसास मुझे करवाता है। जब शाम को थकी हारी मैं लौट कर घर आती हूं तो इसकी खुश्बू पहले से ही पूरे घर को महका कर रखती है, जैसे मुझे तेरी यादें चिढ़ा रही हों, कि मैं कभी मुक्त नहीं हो सकती इनसे। सच कहूं तो एक अनकही ऊर्जा तो मुझे भी मिलती ही है किसी दिन सच में गर तेरी यादों का ये फूल मुरझा गया, तो शायद मैं खुद भी अपनी सांसों से हाथ धो बैठूं, पर फिर भी चाहती हूं कि ये मुरझा जाए। कभी कभी तो ऐसा लगता है कि मेरे और तुम्हारी यादों के बीच एक युद्ध सा छिड़ गया है और हम दोनों ही एक दूसरे को हराने की कोशिश करते हैं।
मैं जानती थी कि मेरी यादों का कोई फूल तुम्हारी ज़िंदगी में कभी नहीं खिल पाएगा। मैं जानती थी कि तुम सब कुछ भूल जाओगे। हां, भूल जाओगे तुम कि कोई तुम्हें कितना प्यार करता है। भूल जाओगे ये बात भी कि किसी की पूरी ज़िंदगी तुम्हारी एक मुस्कुराहट के इंतज़ार में बीती है। एक साथ खाना, एक दूसरे की ऊंगलियों में उलझ कर दिन के सारे पहर बीताना, लड़कर हमेशा एक दूसरे पर हक जताना, रुठ जाने पर गुस्सा करते हुए मनाना, तेवर दिखाना, बालों को सहलाना, होठों को चूमना, भीड़ में आंखों के ज़रिए सारी बातें कह जाना…हां, सब कुछ ही तो भूल गए तुम।
मैं जानती हूं, इसमें तुम्हारी कोई ग़लती नहीं। शाप है ये तो…ब्रह्मा से मिला शाप, जिसका असर फिलहाल मुझ पर हुआ है। परिणाम तो मुझे झेलने ही हैं। हैरां भी होती हूं कि उस शाप से मैं कैसे वंचित हो गई। मैं क्यों नहीं भूल पाई तुम्हें? भूलने वाले को गर दर्द होना चाहिए तो फिर इस दर्द की हकदार मैं कैसे बन गई? सब कुछ खत्म होने का शाप सिर्फ मेरे ही हिस्से क्यों?
क्या मुझे भी कोई शाप मिला था…सब्र का, इंतज़ार का….गर हां, तो फिर ये उम्मीद क्यों मुझे? क्यों ‘विश्वास’ के जीतने का ‘विश्वास’ है मुझे। इंतज़ार है मुझे इस इंतज़ार के ख़त्म होने का।
नियति कभी ना कभी अपना रुख बदलती ही है। कभी तेरी यादों का ये फूल भी मुरझा जाएगा और कभी तो मेरा इंतज़ार भी समाप्त हो जाएगा…
चलो…इंतज़ार करते हैं, इंतज़ार के ख़त्म होने का…
beautiful feelings ,,,,, it made me speechless.
keep writing honey !!