सुनो ना,
क्या मुक्ति में ही खुशी है?
क्या हर बंधन एक बेड़ी है?
हां प्रिये,
मुक्ति ही सबका मार्ग है
सबकी इच्छा, लालसा भी
बंधन में रहकर कौन जी पाया
अच्छा,
फिर मेरे साथ कैसे बंधे?
क्या कर दूं तुम्हें भी मुक्त?
घुटन की वजह मैं क्यूं बनूं भला…
नहीं,
तुम्हारे साथ बंधना मेरी नियति है
बंध कर ही मुक्त हूं मैं
आज़ादी विलीन करेगी मुझे
रहने दो गिरफ़्त इस आगोश में
ये बंधन मेरी आज़ादी है…