एक और इम्तिहान हो ही गया…हां, कहां रोक पाए तुम खुद को समाज का वो चेहरा बनाने से, जिसने पल पल इम्तिहान लिया है। साक्षी है मेरा दर्द उस काल का, जिस पल तूने मुझे चकनाचूर कर दिया। सीता और उर्मिला दो अलग अलग किरदार थे, तुमने वो दोनों मुझ एक में डालकर क्या नई रचना करनी चाही।
हर बात की एक वजह होती है, तेरे इस बर्ताव का भी कोई सबब अवश्य रहा होगा। ज्ञात नहीं मुझे तेरे विचार, पर आभास है कि कुछ मजबूरियों में तू भी कुचला होगा। ऐसा भी नहीं कि मुझे परहेज़ है तेरी किसी सज़ा से, पर सोच कर परेशान हूं कि अपनी मजबूतियों में जी लूंगी मैं, तुझे हौसला कौन देगा? मैं तेरी ठौर हूं तो मुझसे जुदा तो तू भी नहीं।
ये शायद आगाज़ है…हां, तेरे आगोश में रहकर जो प्रेम की आतिश बढ़ी थी, वो अब फैलती जा रही है। अब सिर्फ अल्फ़ाज़ों से ही मेरे अरमान नहीं कहे जा सकते। ज़िंदगी में दाखिल होने के बाद भला ऐसी तब्दीली क्यों, जो ज़िंदगी को बेज़ार करे। नामंज़ूर है मुझे ये तुम्हारा भेष बदलना। गुनाहों की सज़ा सुनी है मैंने, पर यहां मुझे मेरी ख़ता तक नामालूम है। तेरे में ऐसी फितरत नज़र नहीं आई कभी, जो बता सके कि तू लोभी है या कायर। बेइंतहा मोहब्बत यूं ही तो नहीं की जाती ना किसी से, गर तेरे हिस्से ये आया तो ज़ाहिर सी बात है कि कुछ तो नसीब होगा तेरा।
चल छोड़, ज़रुरी तो नहीं कि हर मुराद पूरी ही हो जाए। शायद कोई काफ़िया ठीक ना लगा हो तेरे मेरे दरमियां, इसीलिए तो दूरी में दूरी आ गई …
चलो सुनने दो मुझे ये गाना –
मेरी हर खुशी में हो तेरी खुशी, मोहब्बत में ऐसा ज़रूरी नहीं
तू जब मिलना चाहे, ना मिल सकूं, ना मिलना मेरा कोई दूरी नहीं
मोहब्बत है ये जी हुज़ूरी नहीं….