हर बार…


‘आज तुम बहुत अच्छी लग रही हो…in fact, you are very beautiful…’ – हां, आज सुबह मुझे देखते के साथ ही तुमने ये शब्द कहे। मैंने अपनी नज़रें नीचे झुकाई और एक हल्की दबी मुस्कुराहट के साथ अपने होंठ दांतों से दबा लिए। तुम मेरा इस तरह से झिझकना और शर्माना देख रहे थे। तुम्हारी आंखों के उस भाव का मैं सामना नहीं कर पाई और कुछ काम का बहाना बना कर उठ गई।

‘तुम रो क्यों रही हो? किसी ने कुछ कहा क्या?’ – परसों ही मुझे रोते देख तुमने मेरे कंधे पर हाथ रख कर पूछा। मैं कुछ जवाब देने की हालत में नहीं थी। बस सिसकियां लिए जा रही थी। तुमने मेरे कंधों को अपने दोनों हाथों से पकड़ा और कहा कि देखो, मेरे सामने ऐसे रोती हो तो मन करता है कि तुम्हारे होठ काट लूं। मैं आंसु से भरी आंखों को ऊपर उठा कर तुमको आश्चर्य से देखने लगी कि ऐसे में भी ऐसी बातें। तुमने हंस कर मुझे देखो और अपने सीने से लगा कर कहा कि ‘तुम जान हो मेरी’।

कभी कभी तुम समझ में ही नहीं आते। 10 साल पहले जब मैं तुमसे टकराई थी, तब भी नहीं समझ में आए थे और आज शादी के दस साल बाद भी नहीं। तुम्हारे हर भाव मुझ पर ही आकर निकलते थे। चाहे वो गुस्सा हो, प्यार हो, साधारण सी कोई नाराज़गी हो या फिर किसी तरह का कोई दुख।

‘तुम जानती हो ना, चाहे कोई सा भी भाव हो, मुझे तुम चाहिए…तुम ही चाहिए’…कहकर तुमने मुझे अपनी बाहों में जकड़ लिया था और बारिश कर दी थी अपने प्यार की। आह…धीरे…जंगली हो जाते हो कभी कभी…मुझे दर्द करता है…कहकर मैंने तुम्हारी बाहों से निकलने की कोशिश की। तुमने अपने दांत मेरे कंधे पर गाड़े और मुझे बाहों में लेकर बिस्तर पर गिरा दिया। कभी कभी जागने वाला तुम्हारा ये जंगली अंदाज़ एक बार फिर से जागा था। यही वो एक समय होता है जब तुम्हें मेरे दर्द की सबसे कम परवाह होती है और सच कहूं तो ये अंदाज़ मुझे पसंद भी है।

‘सुनो ना, आज कहीं बाहर चलते हैं। घूमकर आते हैं कहीं से। चलो, उसी पार्क में चलते हैं, जहां शादी के ख़्वाब बुने थे।‘ – इन्हीं शब्दों में तुमने एक बार फिर से आज अपना प्यार जताया। पता है, कहते हैं कि एक मर्द की पहचान इस बात से होती है कि वो अपनी औरत को किस तरह से रखता है, उसे किस तरह से संवारता है। तुमने जो भाव देकर मुझे संभाला है, वो अतुलनीय है। बिस्तर पर नहीं शर्माना और खुलकर अपनी चाह सामने रखना तुमने ही बताया। तुम्हें मेरी झिझक पसंद नहीं थी। तुम्हें ये भाव भी नहीं पसंद था कि मैं बिना कुछ कहे, किसी भी सुख से अधूरी रह जाऊं।

मैं औरत हूं और शर्म एक औरत का गहना होता है…हां, यही तो सीखा था बचपन से, पर तुमने वो सीख ग़लत बता दी। तुमने बताया कि मेरी तरफ से पहल तुम्हें भाती है। मैं हमेशा इस सोच में उलझी रहती थी कि मैं कैसी लगूंगी अगर ये करूंगी और कैसी लगूंगी अगर वो करूंगी…पर तुमने बताया कि तुम भी कई बार ऐसे ही उलझते हो। एक दूसरे को बढ़ावा देना ज़रुरी है, तारीफ ज़रुरी है…ये पाठ भी हमने साथ में सीखा।

तुम्हें याद है, एक दफे मैं कितना रोई थी, जब तुम मुंह मोड़कर सो गए थे। कितना समय लग गया था मुझे ये समझते हुए कि तुम अंतरंग होने के बाद थककर सो सकते हो और इसका ये मतलब हर्गिज़ नहीं कि तुम मुझे प्यार नहीं करते। जब भी हमबिस्तर होने पर मुझे सुख की अनुभूति नहीं होती, मैं इल्ज़ाम तुम पर धरती थी। ये तो तुम थे, जिसने बताया कि ये जिम्मेदारी मुझे लेनी चाहिए। फोर प्ले से काम ना चले तो रोल प्ले  करना चाहिए, ये ज्ञान किसी किताब में तो नहीं ही मिल सकता था। देखो ना, अब हम खुलकर हर चीज़ के बारे में बात करते हैं और इस बात ने ज़िंदगी में खुशी ही जोड़ी है।

आज इस पार्क में बस एक दूसरे के साथ बैठना, एक दूसरे को निहारना ही कितना सुखद एहसास दे रहा है। जाने लोग कैसे जुदाई सह लेते हैं। एक दूसरे का साथ ज़रुरी है, पर साथ में साथ का होना उससे ज़्यादा ज़रुरी है…

मुझे हर बार ऐसे ही जीना है…हर बार तुम पर फिर से मरना है….

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0 thoughts on “हर बार…

  1. I must say that u r a bold lady with beautiful mind. lucky hain woh log, jinhe aapka sath naseeb hai. love ur writing.

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