चलती नहीं हुकुमत किसी की,
ज़िंदगी में होती नहीं कोई सरकार है
टूटती हैं दिल की दीवारें हमेशा,
उम्मीदें तो तब भी होती बरकरार हैं
कर लो यकीं या फिर खा लो तुम धोखा
खो दो या पा लो तुम फिर से कोई मौका
रहता नहीं कुछ भी फंसता हुआ सा
सच तो यही कि सब आर है या पार है
चलती नहीं हुकुमत किसी की…
हो आंखों में आंसु या बेबस हो आहें
उलझी रहे या फिर सुलझी हो राहें
होता वही है जो होता है होना
बस यही रीत तो निभती हर बार है
चलती नहीं हुकुमत किसी की…
भड़काओ गुस्सा या आ जाओ जोश में
तहलका मचा दो तुम जितने भी रोष में
तलाशी भी ले लो, चाहे जितने दिलों की
नहीं मिलता वो जो तुमसे होता फरार है
चलती नहीं हुकुमत किसी की…
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