सुनो ना,
क्या बढ़ती उम्र के साथ
प्यार भी जाता है बढ़ता
या
यौवन की तरह
वो भी छोड़ता है साथ?
प्रिये,
ये सवाल बड़ा जटिल है
हर मन का है अलग नसीब
मेरा प्यार तुम्हें चमक ही देगा
यौवन के रहते भी
और
बुढ़ापे की झुर्रियों में भी
अच्छा !
फिर क्यों साथ छूटते हैं?
क्यों दिल टूटते हैं?
क्यों ईमानदारी नहीं रहती?
तू-तू मैं-मैं में क्यों हैं जीते?
जिरह तो सहज है प्रिये
दो बर्तनों को खटकना ही है
जिस्मानी प्यार बेईमानी देगा
रुह तक कहां सबकी पहुंच भला
हां, सही कहते हो तुम
मृगतृष्णा को मुहब्बत नहीं कहते
ज़िद भी प्यार नहीं
और ना ही एक बुरी नीयत
इश्क़ तो वो है,
जो ‘हमने’ जीया है
पल पल में, हर क्षण में…
कहीं भी और कैसे भी,
प्यार तो बस यही है…
sahi kaha. pyar bas pyar hai, kisi dhokhe ka naam nahi. aajkal ke zamane me log apne swarth ko pyar ka naam dete hain. bahut achchha likha aapne. likhte rahiye