आज फिर से रात हो चुकी है। ठंडी हवा का झोंका एक बार फिर से मुझे छू कर गया है। बारिश की हल्की हल्की बूंदों में मैं एक बार फिर से भीग रही हूं। एक बार फिर से मैं अपने कमरे की उसी खिड़की पर बैठी हूं, जहां अक्सर शाम बैठ कर मैं तुम्हारी राह जोटती थी। तुम शायद सो रहे हो…पर मैं जाग रही हूं। मैं, ये रात और ये पानी की बौछार…आज फिर से जागेंगे साथ साथ। बातें होंगी तुम्हारी…तुम्हारी मनमानियों और तुम्हारी बेपरवाहियो की….
अजीब सा रिक्त स्थान है तुम्हारे बिना ज़िंदगी में…तुम्हें पता है, बहुत ही अजीब होता है ‘रिक्त’ स्थानों का भरना। कई बार वो भर भी जाते हैं। मेरी ही ज़िंदगी में जाने कितने रिक्त स्थान भरे हैं…कई बार, पर ये वाला जो ‘रिक्त’ स्थान’ है ना…’तुम्हारा वाला’…वैसे का वैसा ही ‘रिक्त’ है। जाने कितने लोग आते जाते हैं ज़िंदगी में…पर तुम वही के वही हो। कोई अपने आने से मुझे जितना भी हिला दे, पर मेरी ज़िंदगी में तुम्हें तुम्हारी जगह से कोई नहीं हिला पाता।
वही रात है, वही खिड़की है, बारिश है और मैं हूँ ….पर तुम नहीं हो …हाँ तुम होकर भी नहीं हो…पास हो कि दूर हो…साथ हो कि मजबूर हो…मैं नहीं जानती…बस तुम नहीं हो ।
मैं भी अब रात की तरह हो गई हूं। तुम्हें पता है, ये रात रोती या हंसती नहीं। बस ख़ामोशी को अपने अंदर समेटे रहती है। इसे किसी से शिकवा शिकायत भी नहीं और ना ही इसे किसी से डर है। मेरी ये रात कभी सोती नहीं, पर देखो ना, इसे किसी बात की कभी टोह भी नहीं मिलती है। मुझे ही कहां पता चलता है तुम्हारे आने या जाने का। जब घर के पर्दे हिलते हैं, खिड़की पर टंगा वो घुंघरु जब शोर मचाता है, तब तेरे आने की आस मन में बांध लेती हूं और जब घर की ड्योढ़ी पर जलता दीया बुझ जाता है, तब मन को खुद बहला भी लेती हूं।
तुम्हें कुछ नहीं पता…कभी तुम भी जागो नींद से तो तुम्हें भी पता चले कि क्या क्या होता है मेरी इन जागती रातों में…
khamosh kar gai
Raat si khamosh!! People like us (who live in metros) doesnt even know the feeling.. thanks for bringing it up..