‘लेटी रहो, तुम्हें आराम की ज़रुरत है। अभी कैसा लग रहा है? ठीक तो हो ना तुम?’….एक ही सांस में अमन ने जाने कितने ही सवाल कर लिए। मुझे उसका चेहरा धुंधला सा नज़र आ रहा था। मैंने हैरान होकर देखा और बिना कुछ समझे लेटी रही। बोलने की हिम्मत थी नहीं मुझमें। पूरी ताकत लगा कर मैंने पूछा – ‘कहां हूं मैं? हुआ क्या मुझे? तुम यहां कैसे?’ अमन ने मुस्कुरा कर कहा कि सब बताउंगा, फिलहाल बस आराम करो। कहकर उसने मेरे बालों पर हाथ फेरा और डॉक्टर को आवाज़ लगाते हुए बाहर चला गया। दो सेकेंड के अंदर ही मेरा पूरा परिवार हॉस्पिटल के उस कमरे में मौजूद था।
हां, हॉस्पिटल में थी मैं। ट्रक से एक्सिडेंट हुआ था मेरा। कार नहीं बची थी मेरी, पर मैं बच गई थी। तकरीबन 20 दिन बाद होश आया था। सबने एक तरीके से उम्मीद छोड़ दी थी। इसे इत्तेफाक कहिए कि जब एक्सिडेंट हुआ तो मेरे खून से लथपथ शरीर को हॉस्पिटल लाने वाला भी अमन ही था। आप सोच रहे होंगे कि ये अमन का क्या किस्सा है? तो अमन वो है, जिसे मैं पिछले 8 सालों से जानती थी। शांत रहकर चुपचाप मेरे पीछे रहने का काम अमन ने हमेशा किया। मुझे उसका ये रुप भाता भी बहुत था, पर उसकी चुप्पी की वजह से मैंने भी ख़ामोशी ओढ़ ली थी। अचानक ही मुझे शहर छोड़ना पड़ा था और मैंने पता नहीं किस भाव में आकर उसे नंबर नहीं दिया। पिछले साल ही वापस अपने शहर आई, पर अब उसकी यादें थोड़ी धुंधली सी हो चुकी थी। किस्मत ने एक बार फिर कुछ इस तरीके से हमें मिलाया था।
डॉक्टर ने आराम करने की हिदायत दी। घरवाले भी कई रातों से से सोए नहीं थे, तो अमन ने उन्हें भी आराम करने के लिए कहा। मैं एक लंबी नींद के बाद से जागी थी शायद इसलिए सो नहीं पा रही थी। ‘तुम सो क्यों नहीं रही?’ – अमन ने रुम में घुसते ही कहा। मैं उसे देखकर मुस्कुराई। ‘वैसे बहुत सोई हो तुम। काफी अच्छी नींद ली तुमने।‘ – अमन ने प्यार से मुझे देखा और पास पड़ी कुर्सी पर बैठ गया। ‘वैसे जब तुम्हें कार चलानी आती नहीं, तो चलाती क्यों हो? किस ख़्याल में गुम थी जो सामने से आता इतना बड़ा ट्रक नहीं देख पाई?’ – अमन का मूड और लहज़ा, अचानक ही बदल गया था। मैं बस उसे ही देखे जा रही थी। ‘तुम अचानक से कैसे आ गए वापस?’ – मैंने अमन को गौर से देखते सवाल दागा। ‘ मैं गया ही कब था’ – अमन ने मेरे हाथों पर हाथ रखकर कहा। मैं बस वैसे ही पड़ी रही, बिना किसी रिएक्शन के। अमन ने खुद ही बोलना शुरु कर दिया और उसकी बातों को सुनकर मुझे महसूस हुआ कि बड़ी ही बोरिंग फिल्म की तरह हमारी कहानी चल रही थी। हम दोनों ही एक दूसरे के बोलने का इंतज़ार कर रहे थे। अमन ने मुझे छेड़ा – ‘बड़ी गहरी और लंबी नींद से जागी हो। क्या सपने में मैं था?’ मैं हंसी। हां में सर हिला कर मैं वैसे ही पड़ी रही। अमन इमोशनल हो रहा था। ‘जल्दी ठीक हो जाओ। पता है, कितना डर गए थे हम सब कि कहीं तुम्हें खो ना दें।‘ मैं बस चुपचाप से अमन को देख रही थी।
आज से 8 साल पहले ठीक आज के ही दिन मैं अमन से पहली बार मिली थी। अमन मेरे बालों में हाथ फेरे जा रहा था और मैं अपनी ही सोच में गुम थी। ‘प्यार तो सब करते हैं पर उस प्यार के लिए कोई क्या करता है, ये महत्वपूर्ण है। तुमने क्या किया? बस चुप रहकर खुद को शाहरुख समझते रहे?’ – मैं जितना गुस्सा दिखा सकती थी, दिखाया। ‘अरे! तुम पागल हो। ऐसे कैसे कह देता? तुम समझती नहीं। खुद को बयां करना आसां नहीं है। वो भी तुम जैसी के आगे, जो कब क्या बोल दे, पता ही नहीं।‘ अमन सच ही कह रहा था। उसे मेरे इन गुज़रे वक्त का सारा हाल पता था। वो था…हमेशा से ही था…बस जता नहीं पाया।
‘तुम्हें पता है, तुम्हें आज ही क्यों होश आया है?’ – अमन ने प्यार से मेरी तरफ देखते हुए पूछा। मैं बिना कुछ बोले बस उसे देख रही थी। ‘क्योंकि आज ही हमारी पहली मुलाकात थी और 8 सालों बाद एक बार फिर से ये हमारी पहली मुलाकात है।‘ – अमन ने प्यार से मुझे देखा।
मैं हमेशा से ‘तुम’ को सोचती थी। शायद हम सब सोचते हैं पर वो ‘तुम’ हमारे सामने, हमारे करीब ही होता है, ये पता नहीं चलता। मुझे भी तुम्हारे होने का पता नहीं चला।
अब तुम आ गए हो तो फिर से ज़िंदा हो चली हूं मैं। हां, अब यकीं हो चला है कि अब जी लूंगी ज़िंदगी…
i know it wont be ur story…but still…r u ok?