हिचकी


सांसें रुकती सी होंगी ना तुम्हारी

जैसे कहीं दबे हुए हो

घुटन तो नहीं हो रही तुम्हें कहीं

शायद कुछ भी करने में दिक्कत हो अब

थोड़े तड़प रहे होगे

शायद मचल भी रहे होगे

ज़ेहन में ना जाने कितने नाम होंगे

बेचैनी का एक आलम होगा

यादों का काफ़िला भी गुज़रा होगा

फंसे होने का एहसास मिलेगा

हाथ-पांव मार कर

बाहर आने की नाकामयाब कोशिशें 

हां, 

सब जुगाड़ कर लोगे तुम

पर चैन कहीं ना आएगा तुमको

थोड़ा तड़पो….

थोड़ा छटपटाओ अब

अटके हो मेरी हिचकी में आकर

तुम्हारे साथ तो ये होना ही था….

2 thoughts on “हिचकी

  1. Dear Sweta,
    I must say that you are having a very good potential to become a poet. The way you have expressed the feeling of human behavior is obvious in your post, and the way of expressing it is more than a poetic creation, it rather comes up as a feeling and experience. I would love to congratulate you for choosing such plane words for expressing the feeling of a lifetime.
    Piyush

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