क़ीमत


यूँ चुपके चुपके आँखमिचौली
कब तक खेलोगे भला?
किवाड़ की ओट से देखती
तेरी वो नज़र देखी मैंने
दिल का दर्द सम्भालो ज़रा
छलक कर आ रहा है बाहर
एक ख़्वाब था तेरा साथ,
जो ख़्वाब सा ही रह गया
क्या थी मैं?
शराब से भरे एक गिलास जैसे
हाँ,
मैनिक्योर किए हाथों से
संभाला जाता है जैसे गिलास
ठीक वैसे ही संभाली गई मैं
शराब के ख़त्म होते के साथ ही
नहीं रहती गिलास की क़ीमत
नहीं रही मेरी भी…
ठुकराई गई मैं,
मिली कई रूस्वाइयाँ भी
पर अब तुम मलाल में क्यूँ?
बेदर्दी में तो दर्द नहीं होता ना?
जाओ,
तुम कभी नहीं समझ पाओगे
मैं जब तुम संग थी
मैं अपने ‘बेस्ट वर्जन’ में थी
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