सुनो ना,
क्या होती है ये हार-जीत?
क्यों मिट जाती हैं हस्तियां?
इश्क़ में भी क्या होती मात है?
प्रिये,
हार-जीत है बस भ्रम मन का
साज़िशों में इश्क़ नहीं पनपता
हार में हो जब जीत की खुशी
समझो तभी कुछ बात बनी
सुनो,
लूडो खेलते वक्त तो
हारते हो कई गोटियों से
उस हार में भला तुम्हारी कैसी जीत?
प्रिये,
हमारे दरमियां बस उतनी ही हार-जीत
तुम जीतो कुछ गोटियों से
मैं जीतूं तुम्हारी उस खुशी से
जो बस गए हैं रुह में जाकर
उनसे भला मन का कैसा बैर?
तेरे-मेरे बीच में नहीं कोई दीवार
साथ में हंसना औ’ साथ में रोना है…