कुछ गुमनाम सिलसिले कभी नहीं रुकते। ख़्वाबों की जंज़ीरों में बंध कर वो कभी मुक्त नहीं होते। कुछ आवारा से मिज़ाज होते हैं जो बस जब देखो तब, अपने पंख फैलाकर उड़ान भरने लगते हैं। दिल का फ़रेब भाता है…सुहाता है। अपने ही शौक़ में जकड़ा ये दिल अपने ही होठों को काटता है, जैसे मानो किसी नशे की शुरुआत हो।
तुम इसे ख़राबी कहते हो…ना ना…ये ऐसी किसी चीज़ का आगाज़ नहीं, जो तबाही दे। ये तो बस तमन्नाएं हैं, जो मचलती हैं। क़रीने से रखी चीज़ों पर भी धूल जमती है, मेरे दिलो दिमाग पर भी जमी। बड़े एहतियात से उसे साफ करना पड़ता है। कई बार तो इस बात का भी डर सताता है कि किसी शोर से मेरी रातें जग ना जाएं। दिन के उजाले मेरी रात की सोच पलट देते हैं। रात को शोर से बचने वाला मन, दिन में लबों पर हंसी का शोर लेकर घूमता है।
तुम्हें क्या लगता है? क्या मेरे पास इरादों या चाहतों की कोई गठरी नहीं होगी? क्या कोई भी ऐसा है, जो इस गठरी के बिना रह सकता है? नहीं…मुमकिन ही नहीं। हां, मेरे हालात अलग हो सकते हैं। गठरी बिखरने का डर मुझे कहीं इस गठरी के साथ बाहर जाने ही नहीं देता था, पर अब शायद गठरी खुल जाए…नज़र के ऑंगन में अब जब फूल खिल ही उठा है, तो क्यूं ना खिलने दूं उसे…
हैरत में लिपटी एक सोच ज़ेहन में आ बसी है। हौसले और ख़्वाहिशों से भरा एक सफर शुरु हो चुका है। तुम्हें क्या पता, कभी कभी मुद्दतों से सोए दिल भी जाग उठते हैं…
Loved this. Want to meet you someday.
Bahut Khoob likha hai..
Neeraj