लव आजकल


आज शाम को ठंड में ठंडी हवा खाने का मूड हुआ और निकल पड़ी मैं पार्क में। बिल्कुल नहीं, वॉक करने का या एक्सरसाइज करने का कोई मूड नहीं था मेरा। मैं तो बस हरियाली का मज़ा लेना चाहती थी। कोने में एक बेंच दिखा, जिस पर एक जोड़ा बैठा था। आस पास के सारे बेंच भरे हुए थे, तो मैंने वही जाकर एक तरफ बैठने का फैसला किया और बस उस एक फैसले ने मेरा मन गार्डन गार्डन कर दिया।

‘सुनो ना, इतने दिन पर मत मिला करो। तुम्हें पता है ना, मैं रह नहीं पाता।’
‘चल झूठे। क्लास में देखा मैंने, आरती से कितना हंस कर बात कर रहे थे तुम।’
‘अरे! पागल हो क्या? वो तो बस यूं ही। वो बात करने आई तो क्या करता? और तू भी तो उस राकेश की ऑंखों में ऑंखें डालकर बात कर रही थी। कुछ कहा मैंने?’
‘ओह वो। यार वो देखता ही इतने प्यार से है कि क्या करूं। साला कमीना हैंडसम तो बहुत है।’
‘चाह क्या रही है? मेरे से मन नहीं भरता क्या तेरा?’

हां, दबी आवाज़ में यही सारे शब्द मेरे कानों में पड़े। मैंने एक नज़र उन प्यार के पंक्षियों पर डाली। 17-18 साल के आस पास उम्र होगी। एक दूसरे से यूं चिपके पड़े थे, जैसे बिना ऑपरेशन के अब अलग नहीं हो पाएंगे।

हाए रे ये जवानी का दर्द….आप नहीं समझ पाएंगे जनाब इन परिंदों की हालत। ये जो फड़फड़ाहट है ना इनकी, ये नए नस्ल में आजकल ज़्यादा पाई जा रही है। पार्क का बेंच हो या फ़िल्म हॉल में कोने की सीट हो, इन्हीं का कॉपी राइट समझिए बस। अब अगर आपके दिमाग को ये बात परेशान कर रही है कि एक पर क्यों नहीं टिकता इनका दिल, तो लो कर लो बात। समझाओ यार अपने दिमाग को। ऐसा कहां होता है भला अब? अब भला पढ़ाई कहां इनके बस की, तो फिर ऐसे में ऑंखों की भाषा भी कैसे पढ़े। लद गए जी वो ज़माने, जब मन की बात ऑंखों से समझी जाती थी। आजकल खुलने का वक्त चल रहा है। चाहे वो मानसिक हो या शारीरिक….

ये आज कल के लव बर्ड्स हैं, जो उड़ रहे हैं। ये वो पतंग हैं, जिनकी डोर किसी के हाथ में नहीं। लव आजकल कुछ ऐसा ही है।

चलिए छोड़िए, बदलने दीजिए इन्हें लिबास। सही साइज़, सही रंग मिलने पर कोई एक लिबास पसंद आने की उम्मीद ही कर सकते हैं हम तो…

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