कभी गोल कभी चौड़ी, कभी लगती सपाट सी
सच है कि ज़िंदगी का, एक ही आकार ना होगा
रह जाएंगी ख़्वाहिशें, कई सारी अधूरी यहां
एक ही उम्र में हर सपना, तो कभी साकार ना होगा
चस्का लगा के देखा है, इश्क़ का कई बार मैंने
टूट के बिखरता है सब, अब कभी यूं प्यार ना होगा
अनजान हूं इस बात से, भरा है या खाली है दिल
सबके हैं वफा के दावे, पर अब यूं ऐतबार ना होगा
दर्द नहीं है सीने में, ना ही कोई कसक है बाकी
बात बस इतनी सी है, दिल अब तलबगार ना होगा