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ख़ुद से ख़ुद को जीतने की चाहत
ख़ुद से ख़ुद को हराने का जज़्बा
ये कैसी लड़ाई लड़ी है दिल ने
ऐसे तो कोई तक़रार नहीं करता
तेरा रहना ना रहना सब बराबर
पास ही रहता है दूर भी जाकर
ये धड़कन क्यूं चले है अलग सी
ऐसे तो कोई बेक़रार नहीं करता
क्यूँ डर लगता है कुछ पाने से
ख़ुशी होती है तेरे आने से
तू ख़ामोश बस मुस्कुराता
ऐसे तो कोई इक़रार नहीं करता
यकीं है तेरे अन्दर कुछ पलता
तेरी चुप्पी में इक शब्द है जलता
आँखों में हाँ, होठों पे ना क्यूँ
ऐसे तो कोई इंक़ार नहीं करता
बहुत सुंदर भाव .
बहुत सुंदर और परिपक्व भावाभिव्यक्ति श्वेता ।
Juat too good