सुनो ना,
सदियों से करती रही
इंतज़ार जिस लम्हें का
वो आकर बस यूं ही कैसे गुज़रा?
जैसे बस छूकर सा चला गया हो
इतने कीमती लम्हें,
किश्तों में क्यों मिलते हैं भला?
प्रिये,
पलों में मिलें या क्षणों में
कुछ मिलन ऐसे ही होते हैं
जो झोली में बस आ गिरते हैं
ज़िंदगी हमेशा महकाने के लिए