मुझे तो तुम्हारा दिमाग समझ ही नहीं आता। कितने धक्के खाने हैं और कब तक खाने हैं, ये आज बता ही दो। किसी भी चीज़ की कोई सीमा होती है पर तुमने तो खुद को चोट पहुंचाने की सारी सीमा ही पार कर रखी है। क्या चाहती हो? नारी मुक्ति मोर्चा की बातें करने से कोई मुक्त नहीं होता। ना ही किताबी ज्ञान किसी की ज़िंदगी को पार लगवाता है। बनना पड़ता है मजबूत…अपनी सोच से, अपने काम से।
क्या रोना रो रही थी तुम कल? तुम्हारे पति ने तुम पर अपना गुस्सा निकाला और ना कमाने वाली बात पर ताने दिए? यही बात थी ना? और तुमने क्या किया? जग में ढिंढोरा पीट दिया कि मैंने नौकरी सिर्फ प्यार के लिए छोड़ी थी और आज प्यार ने ही ताने दे दिए। अपनी बेटी को पढ़ा लिखा कर बड़ा आदमी बनाने का भी ज़िक्र तुमने किया था। सही में? तुम्हें लगता है कि ये करके तुम अपनी तरलीफ़ से बाहर आओगी? गर बेटी कुछ ना कर पाई तो? फिर क्या अपने नाती नतिनी से उम्मीदें लगाओगी? क्या सोच रही हो? तुम्हारी ज़िंदगी की खुशियां किसी दूसरे के करने से पूरी या अधूरी रहेंगी क्या? किसने कहा कि इतनी देर हो चुकी है कि तुम कुछ नया शुरु नहीं कर सकती। सीखने की या कुछ करने की उम्र कब निकली है भला?
और तुम….तुम्हारा रोना तो निराला ही है। ब्वॉय फ्रेंड ऑनलाइन दिखता है, पर तुमको तुम्हारे मैसेज का जवाब नहीं देता। फोन नहीं करता या कम करता है। तो अब? अब क्या करने का इरादा है? सुधारोगी उसको? या कोई क्लास ज्वाइन करवाओगी, जहां वो तुम्हारे अनुसार व्यवहार करे। नहीं समझ आ रहा तो आगे बढ़ो ना या उससे बात करो। इतनी छोटी सी बात तुम्हारी मोटी बुद्धी में नहीं घुसती कि किसी को बदल कर पाने का सपना सिर्फ एक वहम है।
लो, इस ग्रुप को भी ले लो। मां बनने के बाद ये डायलॉग कि ‘मैं तो बस अपने बच्चों के लिए जी रही हूं’, इनका फेवरेट डायलॉग है। इतना एहसान अपने बच्चों पर क्यों करना भाई? क्या सच में तुम्हें लगता है कि तुम जो भी करती हो, वो किसी और के लिए करती हो। सुन सकती हो तो सुनो…हम जो कुछ भी करते हैं ना, वो सिर्फ अपने लिए करते हैं। किसको धोखा दे रही हो? दूसरों को या ख़ुद को?
अब जब सब सुन रहे हैं तो तुम भी सुन ही लो। अतीत में रहना बंद करो। भविष्य में भी रहना बंद करो। क्यों सिर्फ आज को नहीं स्वीकार सकती? क्यों सिर्फ अभी में नहीं जी सकती? डर में रहना क्यों ज़रुरी है तुम्हारे लिए? जो बीत गया उसका डर कि ऐसा भी हुआ था तुम्हारे साथ। भविष्य को लेकर डर कि कहीं फिर से कुछ बुरा ना हो जाए। अरे! किसी का बस चलता है क्या इन सब पर? जो होना है, वो तो होगा ही। तुम तो कोशिश करो इन सब डर से बाहर निकलने की। क्या पता, कोशिश का कोई अच्छा परिणाम आ जाए।
उड़ जाओ बस। किसी की सोच पर, कुछ हालात पर तुम्हारा कोई बस नहीं और जिस पर बस नहीं चलता, उसमें दिमाग लगाकर परेशान होना समझदारी नहीं।
तुम्हारे पास सवाल भी हैं, जवाब भी हैं और एक सोच भी है…यकीं करो, तुमसे मजबूत कोई नहीं…
Very practical approach. Too gud.
तुम्हारे पास सवाल भी हैं, जवाब भी हैं और एक सोच भी है…यकीं करो, तुमसे मजबूत कोई नहीं…
Powerful and intriguing 👌
Kickass