लग रहा था कि सलमान की फ़िल्म को रिव्यू की ज़रूरत है क्या? फ़िल्म चाहे जैसी भी हो, अगर उसमें ‘सलमान ख़ान’ है तो वो फिर अपना बिज़नेस कर ही लेगी…पर फिर लगा कि नहीं, रिव्यू तो बनता है😉
फ़िल्म का नाम है ‘ट्यूबलाइट’ और कबीर ख़ान हैं फ़िल्म के डायरेक्टर। सलमान के साथ ये उनकी तीसरी फ़िल्म है। ‘एक था टाइगर’ और ‘बजरंगी भाईजान’ के बाद अब ‘ट्यूबलाइट’। कहानी को 1962 के वक्त का दिखाया गया है, जब भारत-चीन में लड़ाई चल रही थी। गांधी जी की सोच पर यकीन करने की कहानी है। लक्ष्मण सिंह बिष्ट यानी सलमान बचपन से ही मंदबुद्धि है, जिसकी वजह से सब उसको ‘ट्यूबलाइट’ कहकर चिढाते हैं। लक्ष्मण अपने भाई भारत यानि सोहेल ख़ान से दिलोजान से प्यार करता है। भरत अपने भाई लक्ष्मण को ‘कप्तान’ कहकर बुलाता है। लक्ष्मण का विश्वास है कि यकीन दिल में होता है। लक्ष्मण का छोटा भाई भरत जब भारत-चीन के युद्ध के बाद वापस नहीं आता, तब लक्ष्मण सिर्फ अपने यकीन के साथ रहता है। यकीन के रंग को देखने के लिए फ़िल्म देखिए।
सलमान ने इस फ़िल्म में शर्ट नहीं उतारा है। इक छोटे बच्चे की तरह वो मासूम, सीधे और सरल दिखे हैं। इस उम्र में इतनी मासूमियत भरे रोल को निभाने की सलमान ने अच्छी कोशिश की है। सोहेल ख़ान, ओम पुरी, मोहम्मद जीशान अय्यूब, यशपाल शर्मा, जू जू ने भी बेहतरीन काम किया है। चाइल्ड आर्टिस्ट माटिन के टंगू ने तो दिल जीत लिया है। बहुत ही क्यूट लगे हैं वो और उनकी डायलॉग डिलिवरी उससे भी ज़्यादा प्यारी है।
कहानी थोड़ी और मजबूत लिखी जा सकती थी। डायरेक्शन में भी काफी जगह कमी रह गई। युद्ध के सीन्स पर भी ज़्यादा ध्यान नहीं दिया गया। गांधी के सिद्धांतों को कबीर ने फ़िल्म में दिखाने की कोशिश की है। गाने ठीक हैं। ‘सजन रेडियो’ वाला गाना सबकी जुबान पर भी है।
सलमान ने इस फ़िल्म में हंसाया भी है और रुलाया भी है। जो उन्होंने पहले कभी नहीं किया, वो करके दिखाया है। बिना शर्ट उतारे, बिना मसल्स दिखाए, बिना गुस्से और लड़ाई किए, वो दिल जीतते हुए लगते हैं।
बताना भूल ही गई कि जादूगर शाशा के रोल में शाहरुख भी अच्छे लगे हैं। 😉
इस फ़िल्म को मिलते हैं 2.5 स्टार्स।