मुझे बचपन से ही जासूसी की दुनिया पसंद थी। बाबा-दादी मां जब कहानियां सुनाते तो मैं अक्सर उनमें खो जाया करती थी। मेरे दिमाग में जासूस की जो रुप रेखा बनी हुई थी वो बिल्कुल जग्गा जैसी ही होती थी। सीधा सिंपल सा, पर जिसका दिमाग बहुत तेज़ चलता हो। मैंने कभी भी उस जासूस को नहीं देखा अपने सपनों में जो ऑंखों पर काला चश्मा पहनता हो, जो मफलर लपेटता हो और जिसके हाथों में सिगार हो। अच्छी बात ये है कि अनुराग बासु ने मुझे मेरी बचपन की कहानियों वाले, मेरे ज़ेहन में बसे जासूस से मेरी मुलाक़ात करवाई।
‘पिक्चर शुरू’ से लेकर अंत तक, कई दिलचस्पियां जगाती है। जिस तरह फ़िल्म में मोबाईल बंद रखने का संदेश दिया जाता है, वो अच्छा लगता है देखने में। रणबीर एक प्रोड्यूसर के तौर पर भी जुड़े हैं इस फ़िल्म से। ब्रेकअप के बाद रणबीर और कैट को एक साथ देखने का लालच जितना बड़ा था, उससे कहीं ज़्यादा मुझे ‘बर्फ़ी’ के बाद रणबीर और अनुराग की जोड़ी को देखने का था।
कहानी जग्गा उर्फ रणबीर की है, बादल बाग्ची उर्फ टूटी-फूटी उर्फ शाश्वत चटर्जी की है, श्रुति सेन गुप्ता यानि कैटरीना की है। फ़िल्म के डायलॉग्स गाने में कहे गए हैं। ये काम बेहद ही मुश्किल था, पर अनुराग बासु के डायरेक्शन, प्रीतम के संगीत निर्देशन, अरिजीत की आवाज़, अमिताभ भट्टाचार्य के शब्द और रणबीर की एक्टिंग ने इस काम को ना केवल आसान बनाया, बल्कि बेहद खूबसूरत भी बनाया। फर्स्ट हाफ थोड़ा स्लो लगता है। लगता है कि क्या सारी फ़िल्म ऐसी ही चलेगी, पर सेकेंड हाफ में ये सवाल भी गायब हो जाता है।
मेरे लिए रणबीर हमेशा से ही वो एक्टर रहे हैं, जिनके रोने पर मैं रोती हूं और जिसके हंसने पर हंसती हूं। इस फ़िल्म में एक बार फिर से उन्होंने बता दिया है कि एक्टिंग के मामले में आप उन पर छोटी ऊंगली भी नहीं उठा सकते। इस फ़िल्म वो हकलाते हैं इसलिए गाकर अपनी बात कहते हैं, और बात भी ऐसे कहते हैं कि आप कान नहीं फेर सकते। वो माहिर हैं अपने काम में। हर एक एक्सप्रेशन में आपको उनसे प्यार होगा ही होगा। कहीं कहीं वो कॉमिक कैरेक्टर टिनटिन की तरह भी लगे हैं। उनका हेयरस्टाइल काफी अलग है और वो टिनटिन की बहुत याद भी दिलाता है। कैटरीना का काम भी अच्छा है। शाश्वत चैटर्जी ने एक पिता के रोल में उम्दा काम किया है। सौरभ शुक्ला भी करप्ट पुलिस ऑफिसर के रोल में अच्छे लगे हैं।
अनुराग ने काफी रिसर्च करके ये फ़िल्म बनाई है। एक साथ कई मुद्दे दिखाए हैं। 4 साल लगे इस फ़िल्म को सबके सामने आने में, पर इस फ़िल्म ने एक अलग ही दुनिया की सैर कराई। एडिटिंग की वजह से कई बार कहानी थोड़ी स्लो लगती है। फ़िल्म में एक डायलॉग है कि दिमाग का बायां हिस्सा लॉजिकल है जो तर्क करता है और दायां हिस्सा इमोशनल और क्रिएटिव है। ये कहना ग़लत नहीं होगा कि अनुराग ने इस फ़िल्म को बनाते हुए दोनों ही हिस्से का इस्तेमाल किया है। फ़िल्म का क्लाइमैक्सअलग है। हो सकता है कि कई लोगों को वो पसंद ना आए और हो सकता है कि कई लोग ये उम्मीद लगा ले कि शायद इसका दूसरा भाग भीआएगा।
फ़िल्म में बहुत सारे गाने हैं और सारे ही गाने अच्छे हैं। ‘दिल उल्लू का पट्ठा’ और ‘ग़लती से मिस्टेक’ पहले से ही हिट है। अगर आपके अंदर का बच्चा ज़िंदा है, अगर आपने भी मेरी तरह जासूसी के किस्से सुने हैं, अगर आप भी रणबीर के रुप में एक अलग जासूस को देखने के लिए तैयार हैं, तो इस फ़िल्म को देख सकते हैं।
इस फ़िल्म को मिलते हैं 3 स्टार्स।