जो रह गया…


सब जा रहा है, सब चला ही जाता है
कभी वापस ना आने के लिए
कहां लौट पाता है वो लम्हा
जो बस दो सेकेंड पहले ही गुज़रा
मन अटकता है हमेशा
वक़्त कभी फंसा नहीं
उसकी शाख से कुछ पत्ते नोंचकर
दिल को बहला लो जितना
चीख लो चिल्ला लो
जो जा चुका, वो तो जा ही चुका
हां,
बस मानना है तुम्हें
स्वीकारना है तुम्हें
पी लो इस सच को
कि
सब जा चुका है
कभी वापस ना आने के लिए
तेरे लिए मेरे लिखे शब्द बचे हैं
कभी कहीं ना जाने के लिए

 

2 thoughts on “जो रह गया…

  1. शब्द ही तो शाश्वत है श्वेता । बहुत सुंदर कविता ।

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