राजा का बेटा ही राजा बनेगा, इस विचारधारा को तोड़ा था बिहार के जीनियस गणितज्ञ अानंद कुमार ने और विकास बहल उन्हीं की बायोपिक लेकर बॉक्स ऑफिस पर हाज़िर हैं। विकास बहल ने अपनी फ़िल्म ‘सुपर 30’ के ज़रिए उस हीरो की कहानी कही है, जो बिहार का द्रोणाचार्य समझा जाता था, फर्क ये था कि उसने एकलव्य से गुरूदक्षिणा नहीं मांगी, बल्कि उसको चुना अपनी शिक्षा के लिए, राजा के बेटे अर्जुन को नहीं।
अानंद कुमार (रितिक रोशन), जो पटना में गणित के टीचर हैं, उनके मैथ सॉल्यूशन वाले आर्टिकल को पढ़कर कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी में उन्हें एडमिशन भी मिलता है, पर गरीबी की वजह से वो वहाँ जा नहीं पाते और इस सदमे की वजह से आनंद कुमार के पिताजी (वीरेन्द्र सक्सेना) दुनिया छोड़कर चले जाते हैं। एक दिन लल्लन जी (आदित्य श्रीवास्तव) आनंद कुमार को अपने कोचिंग क्लास में पढ़ानं का ऑफर देते हैं, आनंद उसमें पढ़ाने भी लगते हैं पर अचानक ही एक दिन उन्हें अहसास होता है कि वो राजा के बेटे को ही राजा बनाने का काम कर रहे हैं। आनंद उस कोचिंग सेंटर को छोड़कर अपने खुद की कोचिंग शुरू करते हैं, जिसमें वो उन 30 बच्चों को लेते हैं, जो बहुत ही गरीब हैं और जिनके पास कोई साधन नहीं। कई बाधाओं के बावजूद वो अपने सुपर 30 को आई आई टी के लिए तैयार करते हैं।
विकास बहल ने अपनी फ़िल्म में सब कुछ इतना ऑथेंटिक रखा है कि आप उसमें पूरी तरह जाने लगते हैं। आनंद कुमार की परेशानी आपको भी परेशान करती है और उनकी खुशी में आप भी हंसते हैं। डायलॉग्स अच्छे हैं फ़िल्म में। कई सीन्स ऐसे हैं, जिससे सिरहन भी होती है और वो भाते भी हैं। आनंद कुमार का एक गरीब बच्चे के बटुए को देखकर ये पूछना कि बटुए में क्या है? बच्चे का जवाब देना- ‘खाली है।’ आनंद कुमार का फिर से पूछना कि फिर रखा क्यों है? बच्चे का जवाब देना -‘आदत डाल रहा हूँ’। ऐसे कई सीन्स हैं जो होठों पर हंसी ला देते हैं। फ़िल्म के ज़रिए अलग फॉर्मुला, अलग अलग थ्योरिज़ को देखना भी काफी इंट्रेस्टिंग है।
ग्रीक गॉड उर्फ रितिक रोशन को फ़िल्म की शुरूआत में टैन देखना या बिहारी टोन में बोलते सुनना अटपटा लगता है। रितिक की मेहनत दिखने लगती है और वो टोन कहीं कहीं आर्टिफिशयल भी लगता है, पर उन्होंने आनंद कुमार के कैरेक्टर को इतने अच्छे से पकड़ा है कि धीरे धीरे फ़िल्म में आप उस टोन को स्वीकार लेते हैं। एक्टिंग उनकी कमाल है। शिक्षा मंत्री के रूप में कमाल तो पकंज त्रिपाठी ने भी किया है। पकंज को देखकर लगता है कि हर फ़िल्म में उनका रहना, उस फ़िल्म को एक अलग मसाला देकर जाता है। मृणाल ठाकुर, आदित्य श्रीवास्तव, अमित साद, विजय वर्मा, वीरेन्द्र सक्सेना, नंदीश संधु ने भी बहुत अच्छा काम किया है।
जिनके बारे में आपको बहुत कुछ नहीं पता हो, उनकी कहानी को फ़िल्म के रूप में देखना अच्छा ही लगता है। ‘सुपर30’ भी एक ऐसी ही कहानी है, जो समाज में कुछ अलग करने की सोच देती है, जो बताती है कि राजा का बेटा ही राजा नहीं बनेगा, वो बनेगा जो डिज़र्व करेगा। एक बार इस फ़िल्म को देखना बनता है।