वैसे तो हम सबने पानीपत युद्ध के बारे में पढ़ा है। इतिहास में पानीपत की तीसरी लड़ाई को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है और उसी इतिहास के पन्नों को दिखाने के लिए आशुतोष गोवारिकर ने बनाई है ‘पानीपत’। वो लड़ाई, जो 14 जनवरी 1761 में मराठाओं और अफगानिस्तान के शासक अहमद शाह अब्दाली के बीच लड़ी गई थी। मराठाओं का नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ ने किया था।
कहानी मराठाओं के पराक्रम की है। सदाशिवराव भाऊ की है कि जो पेशवा के सेनापति थे, जो बिना किसी स्वार्थ के वो किस तरह अपनी आखिरी सॉंस तक अपनी सरज़मीं के लिए लड़ते रहे। कहानी सदाशिवराव और पार्वती के प्यार की है। कहानी अपने ही लोगों के विश्वासघात की है।
आशुतोष गोवारिकर ने शानदार तरीके से इस लड़ाई को दिखाया है। रिसर्च की जाने वाली कहानी पर फ़िल्म बनाना आसान नहीं, पर आशुतोष इसी चीज़ के लिए तो जाने जाते हैं। कास्टिंग अच्छी है। ऐसी ऐतिहासिक फ़िल्में बनाने में आशुतोष माहिर हैं। जो चीज़ इस फ़िल्म को कमज़ोर करती है या अखरती है, वो है इसकी लंबाई। फर्स्ट हाफ में कहानी बहुत स्लो लगती है। कहानी में जो स्पीड आती है, वो सेकेंड हाफ में भी हाफ के बाद आती है। कहानी थोड़ी कसी जाती तो बेहतर बनती। इसके अलावा सेट कमाल के हैं, कॉस्ट्यूम डिज़ाइनिंग अच्छी हुई है। वीएफएक्स कुछेक जगह अखरता है। सिनेमेटोग्राफी अच्छी है। म्यूज़िक अच्छा लगता है सुनने में।
सदाशिवराव भाऊ के रोल में अर्जुन कपूर का काम अच्छा है। पार्वती बाई के रोल में कृति सेनन अच्छी लगी हैं। ये रोल उनके लिए हटकर था, जिसे उन्होंने अच्छे से निभाया है। संजय दत्त अपने खुंखार रोल में पूरी तरह जमे हैं। ‘पद्मावत’ के खिलजी की याद भी आ सकती है उन्हें देखकर। इसके अलावा मोहनीश बहल, पद्मिनी कोल्हापुरे और सारे कैरेक्टर्स का काम भी अच्छा रहा है।
ऐतिहासिक फ़िल्में पसंद हैं, जो लड़ाई किताबों में पढ़ी है, उसे देखना चाहते हैं, तो ये फ़िल्म आपके लिए है।