हंसते हंसते कोई नए तरीके से एकदम सटीक निशाना लगाए तो उसे कमाल तो कहेंगे ही। बस, ऐसा ही कमाल किया है मुदस्सर अज़ीज ने अपनी फ़िल्म ‘पति पत्नी और वो’ में।
#Lucknow now और #Kanpur then से शुरू होती है चिंटू त्यागी ( कार्तिक आर्यन) की ज़िंदगी की कहानी। कानपुर के रहने वाले चिंटू त्यागी इंजीनियर हैं, सरकारी नौकरी करते हैं। चिंटू के पिताजी की माने तो अब चिंटू शादी के लिए तैयार हैं, तो शादी हो जाती है उनकी वेदिका त्रिपाठी (भूमि पेडनेकर) से। वेदिका चाहती है कि वो लोग दिल्ली शिफ्ट हो जाए, और उसी बात का फ्रस्टेशन दोनों के बीच बढ़ने लगता है। परेशान चिंटू की लाइफ में एंट्री होती है ग्लैमरस तपस्या सिंह (अनन्या पांडे) की। चिंटू की तो जैसे निकल पड़ी। अब जब लाइफ में पति पत्नी के बीच वो आ जाए तो क्या होता है, तो इसके लिए है ना ये फ़िल्म। जाइए देखकर आइए।
मैं उन कुछ लोगों में से हूं, जिनको इस फ़िल्म का ट्रेलर देखने के बाद लगा था कि फ़िल्म कॉमेडी तो है पर वही 1978 वाली कहानी। घिसी पिटी कहानी फिर से क्यों बनाई जा रही है। पर फ़िल्म देखने के बाद मैं पूरी तरह ग़लत थी। मुदस्सर अज़ीज ने जिस तरह से ये फ़िल्म बनाई है, उसमें सब कुछ है। नयापन, हंसी मज़ाक, बेहतरीन एक्टिंग, एक बहुत अच्छा मैसेज, बेहतरीन डायरेक्शन, कास्टिंग, स्क्रीनप्ले सब कुछ बहुत ही सही है। डायलॉग्स तो बहुत ही अमेज़िंग है। एक सीन में कार्तिक आर्यन का एक मोनोलॉग है, जिसमें वो इंडियन मिडिल क्लास मैन की व्यथा को बताते हैं, वो सीन बहुत मज़ेदार है। ‘विचार करने से बच्चे पैदा नहीं होते’, ‘एक होती है हक़ीक़त और एक होती है कपोल कल्पना’, ‘बड़े शहर वालों को मोहब्बत की फिर्सत कहां होती है’ जैसे कई डायलॉग्स आपको बहुत हंसाएंगे। एक्स्ट्रा मैरिटल अफेयर पर फ़िल्में बनती रही हैं, पर पति-पत्नी के रिश्ते की अहमियत बताने के लिए ये फ़िल्म बहुत ख़ास है।
चिंटू त्यागी के रोल में कार्तिक आर्यन पूरी तरह फिट बैठे हैं। उनकी स्पेशल वाली हंसी और थोड़ा हकला कर बोलना बहुत हंसाता है। शादी से ऊब कर बाहर एक्साइटमेंट ढूंढना और फिर गिल्ट में आना, इन सारे ही शेड्स को उन्होंने अच्छी तरह से निभाया है। भूमि पेडनेकर की एक्टिंग के बारे में कम से कम मुझे कभी शक नहीं रहता। पतिव्रता हैं, बाहर से मिलने वाले कॉम्पिलिमेंट को हंसकर हैंडल करती हैं, शादी से पहले ही वर्जिनिटी के बारे में बात करने वाला कॉन्फिडेंस रखती हैं और घर पर आई मुसीबत से भी वो अपने तरीके से निपट सकती हैं। ऐसी पत्नी जो सच्ची है पर अबला नहीं, इसके रोल में वो छा गई हैं। साड़ी उन्होंने दूसरे तरीके से पहनी है, जो उनपर अच्छी लगी है। अनन्या पांडे का काम भी अच्छा है। उनकी एक्टिंग में कॉन्फिडेंस दिखता है। अपारशक्ति की एक्टिंग बहुत अच्छी है, बिल्कुल नैचुरल। उनके और कार्तिक के कुछ सीन्स तो एपिक हैं। मेरे लिए इस फ़िल्म के ब्राउनी प्वाइंट अपारशक्ति ही लेकर जाते हैं। सनी सिंह का कैमियो था, जो अच्छा लगा। राकेश यादव के रोल में उस लड़के का काम भी अच्छा है, जिसने फ़िल्म में हंसी का एक डोज़ ऐड किया है। मौसा जी के रोल में नीरज सूद का काम भी बहुत अच्छा है।
गाने पहले से ही हिट हैं। ‘धीरे धीरे’ और ‘अंखियों से गोली मारे’ तो सबकी ज़बान पर चढ़ ही चुका है।
हंसना चाहते हैं, शादी की अहमियत समझना चाहते हैं तो ये फ़िल्म उसके लिए परफेक्ट है। मेरे पास ऐसी कोई वजह नहीं, जिसके लिए मैं ये बोलूं कि आप ये फ़िल्म मत देखिए, तो जाइए, देखकर आइए।