बॉक्स ऑफिस पर एक बार फिर से एक हिस्टॉरिकल फ़िल्म आ चुकी है, जिसका नाम है ‘तान्हाजी- द अनसंग वॉरियर’। फ़िल्म को डायरेक्ट किया है ओम राउत ने।
‘तान्हाजी’ की कहानी 4 फरवरी 1670 में लड़ी गई वो कहानी है, जो शिवाजी महाराज के दोस्त और दाहिने हाथ ‘तान्हाजी’ और औरंगज़ेब के दाहिने हाथ उदयभान के बीच हुई थी। एक ऐसी लड़ाई, जो मराठा लोग कोंढाणा के स्वराज के लिए लड़ रहे थे और औरंगज़ेब हिन्दोस्तां पर कब्ज़ा करने के लिए।
‘पानीपत’ फ़िल्म के बाद ‘तान्हाजी’ भी मराठों की शूरवीरता को दिखाती है। ऐतिहासिक फ़िल्में कई बार बोर करती हैं, पर ओम राउत ने इस बार ऐसा होने नहीं दिया है। फ़िल्म को लिखने में प्रकाश कपाड़िया ने पूरी स्वतंत्रता रखी है। जिस विषय के बारे में बहुत ही कम लोग जानते हैं, उसे बहुत ही इंट्रेस्टिंग तरीके से पेश किया है। फ़िल्म के 3डी इफैक्ट्स ने इसे और भी रोचक बना दिया है। वीएफएक्स इफैक्ट्स कमाल के हैं। उड़ते तीर और भाले आपक बहुत अच्छे से महसूस होंगे। हालांकि कई फाइट सीन्स अविश्वसनीय लगते हैं पर शायद ऑडियंस के एक वर्ग को यही अच्छा लगेगा। युद्ध के सीन्स 3डी इफैक्ट में विज़ुअल ट्रीट का कम करते हैं। म्यूज़िक और कोरियोग्राफी भी फ़िल्म को सपोर्ट करती है। ‘शंकरा रे शंकरा’ और ‘घमंड कर’ गाने अच्छे हैं। केइको नक्कारा की सिनेमेटोग्राफी बहुत ही कमाल की है। हर सीन को उन्होंने बहुत ही खूबसूरती के साथ कैप्चर किया है।
अजय देवगन ने तान्हाजी का रोल अच्छा निभाया है। फाइट सीन्स में वो जमे हैं। स्वराज के लिए मर मिटने वाला जज़्बा उन्होंने बखूबी दिखाया है। काजोल का रोल कम था, पर काम अच्छा था। उदयभान के रोल में सैफ अली खान ने बाज़ी मार ली है। उनके हाव भाव, उनकी दरिंदगी, उनके डांस मूव बहुत ही कमाल के हैं। एक्टिंग के मामले में अजय देवगन पर वो भारी ही पड़े हैं। शिवाजी के रोल में शरद केलकर का काम भी अच्छा रहा है। बाकी सपोर्टिंग कास्ट ने भी अपने रोल को अच्छे से निभाया है।
एक ऐसा टॉपिक, जिसके बारे में कुछ पता ना हो, फ़िल्म के ज़रिए उसको जानना इंट्रेस्टिंग लगता है। पावरफुल इंपैक्ट के साथ बनी इस फ़िल्म को, एंटरटेनमेंट के लिए, इतिहास को जानने के लिए, अजय देवगन और सैफ अली खान के पावरफुल परफॉर्मेंस के लिए देखना चाहिए।