पुराने फॉर्मुले पर चलती ‘खुदा हाफ़िज़’


डिज़नी हॉट स्टार पर आ चुकी है विद्युत जामवाल की एक्शन फ़िल्म ‘खुदा हाफिज़’।

कहानी लखनऊ के समीर चौधरी और नर्गिस की है, जिनकी अरेंज मैरिज होती है। नौकरी की तलाश में नर्गिस एक अरब देश नोमान जाती है और अचानक ही वहॉं गायब हो जाती है। समीर अपनी बीवी की तलाश में नोमान पहुंचता है और उसके बाद जो होता है, वो देखकर लगता है कि ये सब कुछ हम पहले भी देख चुके हैं।

फारुक कबीर के डायरेक्शन में बनी ‘खुदा हाफ़िज़’ को देखकर बस यही लगता है कि विद्युत जामवाल की मेहनत बेकार हो रही है। ना तो कहानी ही बहुत अच्छी लिखी गई और ना ही डायरेक्शन में वो दम खम देखने को मिला। कहानी बहुत ज़्यादा सपाट लगती है। कैमरा वर्क ठीक है। एडीटिंग कुछ बहुत कमाल नहीं दिखाती। एक्शन भी फ़िल्म में ठीक है, पर विद्युत एक ही पैटर्न में फंसते जा रहे हैं। म्यूज़िक भी फ़िल्म का औसत ही है।

‘कमांडो’ की सीरिज़ में विद्युत का कमाल देखने को मिला था, पर ‘जंगली’ और ‘खुदा हाफ़िज़’ जैसी फ़िल्में उनके लिए घाटे का सौदा रहेंगी। अगर मौके मिल रहे हैं फ़िल्मों के, तो उन्हें खुद को साबित करने के लिए फ़िल्मों का चुनाव सोच कर करना चाहिए। कमज़ोर कहानी और एक जैसे एक्सप्रेशन को भला कब तक झेला जा सकता है। शिवालिका ओबरॉय दिखने में खूबसूरत लगी हैं, पर उनकी एक्टिंग ने निराश ही किया है। आहना कुमार और शिव पंडित का काम ठीक है पर उनका हिन्दी बोलना बहुत ही अटपटा लगता है। नवाब शाह का काम अच्छा लगा है। फ़िल्म मे अगर किसी को देखकर मन खुश होता है, तो वो हैं उस्मान के रोल में अन्नू कपूर। किसी भी तरह का रोल हो, किसी भी तरह की भाषा बोलनी हो, वो उसमें पूरी तरह फिट हो जाते हैं।

विद्युत का एक्शन और अन्नू कपूर की एक्टिंग, इसके अलावा मेरे पास और कोई वजह नहीं है, जिसके लिए मैं आपको ये फ़िल्म देखने के लिए कह सकूं।

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