वक़्त वक़्त की बात है प्यारे, खुशियॉं तो अब भी आनी हैं
जो अश्क़ निकाले नैनों से, वो बातें बीत जानी है
रखा है जो छिपाकर के, सीने में मैंने सदियों से
मिलेंगे कभी वो कान मुझे, जिन्हें बातें सब बतानी हैं
डर कर बैठा है जो मुझमें, वो एक सहमा भाव है
ख़्वाबों को जो है पा सके, वो सोच मुझे जगानी है
धरना देकर बैठे हैं जो, बंज़र करने ज़मीं ये मेरी
ज़िंदगी बॉंझ ना होगी मेरी, वो सीटें मुझे हटानी हैं
हो जाती है टकराहट भी, यूं ही कभी कुछ चेहरों से
जो ग़ौर से देखूं कभी उन्हें, वो शक्लें जानी पहचानी हैं
मैं तब तक तेरे हिस्से में, जब तक है मुस्कान मेरी
खो दोगे जो दर्द दिया, ये बातें तुम्हें समझानी हैं
लोग कहे मैं पागल हूं, खुद में खोई सी रहती हूं
नहीं करूं मैं ज़िरह यहॉं, मेरी खुशियॉं मुझे बचानी हैं
बातें, तर्क, ज़िरह या ड्रामा, खेलो चाहे कोई भी खेल
बस मन की चाहत सच यहॉं, बाकी सब कहानी है
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