तो दो साल के लंबे इंतज़ार के बाद, पूरे भौकाल के साथ आया है ‘मिर्ज़ापुर’ का दूसरा सीज़न। अमेज़ॉन प्राइम पर जब इसका पहला सीज़न आया था, तब लोगों ने इसे बहुत पसंद किया था, और तभी से सबको कालीन भईया, मुन्ना त्रिपाठी और गुड्डू पंडित का इंतज़ार था।
पहला सीज़न ख़त्म हुआ था बबलू पंडित की मौत पर, तो ज़ाहिर सी बात है कि दूसरे सीज़न में गुड्डू पंडित का बदला होना ही था। दूसरे सीज़न में कालीन भईया मिर्ज़ापुर से आगे बढ़कर राजनीति की चाह रखने लगे हैं, मुन्ना त्रिपाठी इस सीज़न में भी मिर्ज़ापुर ही चाह रहे हैं। दूसरे सीज़न में शरद शुक्ला, माधुरी यादव, दद्दा त्यागी और उनके जुड़वा बेटों को जोड़ा गया है, जो कहानी को बढ़ाने में मदद करते हैं।
पहले सीज़न के बाद जो इंतज़ार मिर्ज़ापुर के दूसरे सीज़न का हो रहा था, तीसरे सीज़न के लिए ये बेचैनी थोड़ी कम हो जाएगी। कारण ये है कि 10 एपिसोड्स वाले इस सीज़न के कुछ एपिसोड्स काफी धीमी गति से आगे बढ़े हैं। पहले सीज़न वाला भौकाल इस सीज़न में ग़ायब होता दिखता है। बदले की कहानी, बिज़नेस की कहानी में बदल जाती है। क्लाइमैक्स भी बहुत खुश नहीं करता। ऐसा लगता है जैसे डायरेक्टर की कोई ट्रेन छूट रही थी और इसीलिए क्लाइमैक्स को फटाक से निपटा दिया गया। सीज़न का फिनाले एपिसोड निराश करता है। हॉं, ये ज़रूर समझ में आ जाता है कि तीसरा सीज़न भी आ सकता है, जिसमें कालीन भईया की वापसी हो जाए।
इन कमियों के बाद भी सीज़न 2 में कुछ बातें ऐसी हैं, जो इसे रोचक भी बनाती हैं, और वो हैं महिला किरदारों के तेवर। पहले सीज़न में बस यूं ही दिखने वाली महिला किरदारों नें, इस सीज़न में पूरा तख़्ता पलट दिया है। गुरमित सिंह और मिहिर देसाई का डायरेक्शन कुछ एपिसोड्स में बहुत ही अच्छा है। डायलॉग्स बहुत दमदार हैं। बीच बीच में आने वाले जोक्स भी एक से बढ़कर एक हैं। गालियॉं भरपूर मात्रा में हैं, तो जो ना झेल पाए, वो इससे अपने आप को दूर रखे। संजय कपूर की सिनेमेटोग्राफी पहले ही सीन से अच्छी लगने लगती है।
मिर्ज़ापुर सीज़न 2 के सारे किरादारों ने एक्टिंग बहुत अच्छी की है। कालीन भईया के रोल में पंकज त्रिपाठी की जितनी तारीफ की जाए, कम है। फ़िल्मों में हंसाने वाले पंकज, इस वेब सीरिज़ में अलग ही अंदाज़ में दिखे हैं। उनके वन लाइनर और उनके एक्सप्रेशन्स, कमाल के हैं। राजनीति की चाह रखने वाले अखंडानंद त्रिपाठी उर्फ पंकज त्रिपाठी ने साबित किया है कि बिना लाउड हुए भी नेगेटिव किरदार को बखूबी निभाया जा सकता है। गुड्डू पंडित के रोल में अली फ़ज़ल ठीक लगे हैं, पर पहले सीज़न का जादू उनमें भी कम दिखा है। मुन्ना त्रिपाठी के रोल में दिव्येंदु का काम अच्छा है। कुलभूषण खरबंदा का कैरेक्टर उभर कर आया है। उनके काम में परिपक्वता साफ दिखती है। बीना त्रिपाठी के रोल में रसिका दुग्गल का किरदार बहुत ही सॉलिड तरीके से लिखा गया है, जिसने इस कहानी को ही बदल कर रख दिया है। त्रिया चरित्र को दिखाती रसिका का काम भी बहुत ही अच्छा है। गोलू के रोल में श्वेता त्रिपाठी भी निखर कर सामने आई हैं। माधुरी यादव के रोल में ईशा तलवार खूबसूरत भी लगी हैं और एक्टिंग भी उनकी अच्छी रही है। इन तीनों किरदारों ने कहानी में महिलाओं की शक्ति, उनकी समझ को बहुत ही अच्छे तरीके से दिखाया है। शरद के रोल में अंजुम शर्मा का काम ठीक रहा है, पर उनके कैरेक्टर को अच्छी तरह से लिखा नहीं गया है। दद्दा त्यागी के रोल में लिलीपुट सही दिखे हैं, हालांकि रोल उनका कम था। वैसे बिहार के इस एंगल को डालने की ज़रूरत थी नहीं। वैल, विजय वर्मा इतने अच्छे कलाकार हैं कि इस सीज़न में उनको इतना कम देखना अखरता है। उनके हिस्से कुछ बहुत बड़ा और बहुत अच्छा आना चाहिए। हालांकि जितना भी काम था, वो छा गए हैं। रॉबिन के रोल में प्रियांशु पेनयुली का कैरेक्टर इंट्रेस्टिंग है। गुड्डू के पैरेंट्स के रोल में राजेश तैलंग और शीबा चड्ढा का काम बहुत अच्छा है। एसएसपी रामशरण मौर्य के रोल में अमित सियाल भी जमे हैं।
पहला सीज़न देख रखा है, तो दूसरा सीज़न देखना बनता है। सबसे महत्वपूर्ण बात, कालीन भईया को देखना बनता है, तो देख डालिए।