
‘पति क्या करते हैं तुम्हारे?’
‘जी…मैं सिंगल हूं….’
‘ओह…क्यों? शादी क्यों नहीं की? तुम तो बहुत अच्छी दिखती हो। तुमसे तो कोई भी कर लेता शादी। अभी भी देर नहीं हुई है…देखो कोई लड़का अपने लिए…’
‘जी आंटी…( मुस्कुराहट के साथ)’
ये जो वार्तालाप मैंने ऊपर लिखा, ये मैं तुमसे कह रही हूं…जिसने सिंगल रहने का फैसला किया। तुम कभी नहीं समझा पाओगी उन आंटी को कि मैं सिंगल इसलिए नहीं कि मैं अच्छी नहीं दिखती…मैं इसलिए भी सिंगल नहीं कि मेरी उम्र गुज़र गई है…मैं सिंगल हूं क्योंकि सिंगल होना मैंने चुना है…बिना किसी नकारात्मक भाव के…
एक अकेली लड़की खुली तिजोरी की तरह होती है…खुली किताब की तरह होती है…और भी पता नहीं किस किस तरह की होती है…कभी अकेले होने की वजह से उसका कोई चरित्र नहीं होता तो कभी अकेले होने के पीछे कई कहानियां होती हैं। कहते हैं कि जिसका फैसला होता है, उसकी वजह भी सिर्फ वही जानता है…पर हमारे देश में तो बॉस…सबको सब कुछ पता होता है…फिर चाहे वो किसी की सोच ही क्यों ना हो। यहां हर कोई स्क्रिप्ट लिख सकता है आपकी ज़िंदगी के बारे में।
सुनो…तुमसे कह रही हूं…तुम सबसे कह रही हूं…जिसने भी अकेले रहने का फैसला किया है…या जिसने फैसला जैसी कोई चीज़ की नहीं है, पर वो अकेली रह रही हैं…इन सब सवालों से..इन सब किस्से कहानियों से घबराने की कोई ज़रुरत नहीं है। समझती हूं…कई बार कुछ कुछ चीज़ें सामने आती होंगी, जिसका सामना करना, या जिससे गुज़रना बहुत आसान नहीं होता, पर विश्वास करो, इतना मुश्किल भी नहीं।
हां…मुमकिन है कि शाम को कई बार लगता होगा कि किसी के पास जाते हैं…किसी से बातें करते हैं…किसी के साथ चाय पीते हैं…कई बार ऐसा कोई मिल भी जाता होगा…पड़ोसी, दोस्त या ऑफिस कुलीग के रुप में…कई बार कोई नहीं भी मिलता होगा…
हां…मुमकिन है कि कई बार मार्केट जाने के लिए या फ़िल्म देखने के लिए कोई कंपनी खोजती होंगी आंखें…कई बार अकेले में भी मज़ा आता होगा…
हां…मुमकिन है कि कई बार छुट्टियों में अकेले घूमने निकल जाती होगी तुम…कई बार समय और पैसे होने के बाद भी सिर्फ किसी कंपनी के अभाव में तुम्हें रिश्तेदारों या परिवार वालों के पास जाकर ही काम चलाना होता होगा…
हां…मुमकिन है कि कई बार कुछ सवालों के जवाब देने में दिक्कत होती होगी…कई बार किसी को समझाना मुश्किल होता होगा कि तुम अकेली क्यों रह रही हो…कई बार किसी की आंखों में वो भाव भी दिखता होगा कि अकेली है तो अवेलेवल है…
हां…मुमकिन है कि दिल के उदास रहने पर किसी के साथ की ख़्वाहिश भी होती होगी…खुद को कई बार जबरदस्ती मजबूत भी बनाना पड़ता होगा…कई बार दिल को ‘सब ठीक ही तो है’ समझाना पड़ता होगा…
हां…मुमकिन है कि अब वो उम्र भी गुज़र चुकी होगी कि कोई तुम्हें पलट पलट कर देखे…हो सकता है कि ये भी सुनने को मिले कि अकेले रहते रहते सठिया गई है…
हां…मुमकिन है कि वैलेंटाइन डे पर लगे कि कोई तुम्हारी बाहें पकड़े, जिसके लिए तुम रेड ड्रेस में सज कर जाओ…
हां…मुमकिन है कि फैमिली फंक्शन में जाने से तुम डरो कि कोई क्या पूछेगा…मैं क्या बोलूंगी…दूसरों के पति को उनके लिए खाना लाता देख तुम्हारा भी ऐसा ही मन करे…
हां…मुमकिन तो ये भी है कि कई बार किसी के साथ अंतरंग होने का मन करता होगा…किसी को पाने का…किसी को खुद को देने की ख़्वाहिश होती होगी…
तो सुनो…ये तमाम मुमकिन बातों में कोई भी बात ग़लत नहीं है…गर कुछ ग़लत है तो तुम्हारा घबराना…तुम्हारा परेशान होना…तुम्हारा डरना…तुम्हारा हड़बड़ाना…तुम्हारा टूटना…
ये जो सवाल…ये जो निगाहें…कभी कुछ हवस…कभी कुछ लांछन लगते हैं ना अकेले रहने की वजह से, उनसे घबराने या परेशान होने की ज़रुरत नहीं…लगाने वाले अक्सर वही हैं, जो तुम्हारे जैसे रहने की तमन्ना करते हैं, पर रह नहीं पाते। भला चाहने वालों के भाव तुम्हें अपने आप ही पता चल जाएंगे…इनसे घबरा कर या परेशान होकर कोई फैसला मत करो। कोई क्या सोचेगा, ये सोच कर अपनी ज़िंदगी मत बदलो…समझो…कि ये समझाने वाले तुम्हें इस तरह समझाएंगे नहीं तो फिर ये करेंगे क्या अपनी ज़िंदगी में…
रोने का मन करता है तो रो लो…हंसना चाहती हो तो हंसो ना…लॉन्ग ड्राइव जाना है, प्लीज़ जाओ…जो करना है करो…पर खुश रहो…अकेली ज़िंदगी तुमने चुनी है…अपनी खुशी से…अपनी खुशी के लिए…और गर ये अकेलापन खुद की मर्ज़ी से नहीं भी है, तो भी…खुशी का तुम पर हक है…तुम उसे खुद से दूर नहीं कर सकती…
ज़िंदगी में अगर हमें कुछ चीज़ों को स्वीकार करने का हौसला मिल जाए, तो शायद ज़िंदगी के मायने भी बदल जाते हैं और उसके रुप रंग भी। वक्त बहुत सारी चीज़ें बदलता है। रुप-रंग पर तुम्हारा कोई कंट्रोल नहीं, पर जिस पर है, उस पर कर के रखो। ज़िंदगी की चाल समझनी बहुत ज़रुरी है। अगर तुमने उसकी चाल के साथ रिदम नहीं बैठाया, तो फिर तुम दूसरों के लिए बात करने का एक मुद्दा भर रह जाओगी।
हम खुद के लिए ही ‘छलिया’ की भूमिका में आ जाते हैं और हमें पता भी नहीं चलता। इतना भी क्या नादां बनना कि मन हमें ही छले और हमें ही पता ना चले…
उड़ो…एक ही बार मिलती है ज़िंदगी …
this is very interesting. R u a magician too?
I am impressed by the way you turn your creative gaze inwards and then dive into the depths of your consciousness to lay bare every private emotion for critical examination. It is said that the toughest thing for a creative writer is to turn the focus of his/her creative muse upon himself/herself as it calls for the greatest degree of detachment. So most writers avoid doing so in the prime of their writing career. That you have done it so early and with such effortless ease speaks volumes about the maturity of your artistic mettle. Keep writing as it is the surest way of liberating oneself from the ego self.