पा की परी


इमोशंस और मेरे बीच कोई ख़ास रिश्ता नहीं है और ना ही किसी ‘डे’ पर मुझे लिखना बहुत पसंद है पर आज सारी चीज़े उल्टी हो पड़ी हैं।

‘फादर्स डे’…ज़माने बाद ‘पा’ भी आज के दिन साथ हैं तो और भी स्पेशल सा है आज का दिन। सुबह जब उनको गले लगाकर विश किया और रूम में आई तो बाबा यानि दादाजी याद आ गए। जब बहुत छोटी सी थी, तभी मैं बाबा-दादी मॉं के हिस्से चली गई थी। बचपन से उन्होंने ही स्कूल भेजा, पाला पोसा, डांटा, प्यार किया, मेरे नखरे उठाए। दिमाग में मर्द की पहली छवि बाबा की ही बैठी मेरे दिलो-दिमाग में। आज याद आए बाबा पर किए गए मेरे सारे सितम, जिससे मैं उनको परेशान करती थी और वो हंस कर उससे भी मज़े लेते थे। मेरे लिए उनका बेईमान होना, मुझे डांटना और दूसरों की डांट से बचाना। बाबा के 6 बच्चे और उन 6 बच्चों के हम 15 बच्चे….इन 15 बच्चों में मैं थी बाबा की परी….उनकी प्रिंसेज….

मेरे लिए बाबा एक सुपर हीरो तो थे ही, मेरे आइडल भी थे। जब कभी हम अकेले में एक-दूसरे को सुनते तो मुझे लगता था कि बड़े होकर मैं भी उन्हीं की तरह चीज़ों को संभालूंगी, उन्हीं की तरह दुनिया देखूंगी….बाबा मुझे काफी कुछ दिखाकर, समझाकर दूसरी दुनिया में चले गए और तब मैं ज़िंदगी के दूसरे मर्द यानि पा की तरफ मुड़ी।

पा 3 भाई- पापा, पापा, चाचु….संबोधन चाहे जैसे भी हो, तीनों से ही पापा का ही भाव मिलता। पा जब भावनाओं में बहकर बात करते तो लगता कि हिन्दी मुझे उन्हीं से विरासत में मिली है। पा बहुत इमोशनल, शायद उसी वजह से एक बहुत लंबे समय तक मेरी आंखों की टंकी भी भरी ही रहती थी। वक़्त बीता, ज़िंदगी में कई ऐसे मौके आए, जब पा के साथ कई ऐसी बातें भी की, जो अमूमन सब मॉं के साथ करते हैं। कई बार मैं ख़ुद हैरां भी होती कि एक बाप होकर वो मेरी भावनाओं को इतने अच्छे से कैसे समझ लेते हैं, जैसे मेरी मॉं या मेरी बहनें भी नहीं समझ पाती।

मैंने जिया है उस वाक्य को कि बाप का साया सर पर रहे तो कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है। महसूस किया है उस अहसास को, जब मेरे परेशान होने पर वो कहते हैं कि ‘घबराना नहीं है, तुम्हारा बाप अभी ज़िंदा है’…पापा के होने पर ज़िंदगी आपको जैसा सुरक्षा चक्र प्रदान करती है, वो कहीं और या किसी और से मिलना मुश्किल है। ‘बाप का साया’ तो बस बाप का ही होता है।

देखती और सुनती हूं कभी कभी कुछ पिता लोग को, जो मुझे मेरे पा जैसे नहीं लगते। जो अपने बच्चों से दूर ‘अपनी ज़िंदगी’ जी रहे होते हैं। जो उस सुख को प्राप्त करके भी उस सुख से वंचित हैं। दुख होता है उन बच्चों के लिए, जिन्हें ‘सुपर डैड’ नहीं मिले। दुख तो उन पापा के लिए भी होता है, जो ‘सुपर डैड’ नहीं बन पाते… पहले अक्सर सोचती थी कि आखिर ‘सुपर डैड’ कहते किसको हैं, पर जबसे पापा को समझा, देखा, उनके अहसास को महसूस किया….’सुपर डैड’ का मतलब भी पल्ले पड़ गया।

जब ज़रूरत रही, पा रहे। जब जो चाहा, उन्होंने कैसे भी उन इच्छाओं को पूरा किया। मैं आज फर्स्ट क्लास में सफर नहीं करती, पर जब तक पा के हाथों में रही, पा ने किसी दूसरी क्लास में जाने नहीं दिया। ग़लती से कोई टक्कर भी मार दे तो पा की नज़रें उसे गुस्से में दूर तक निहारती रहती। वो ‘बॉर्डी गार्ड’ थे, वो मेरे लिए ‘मुन्नाभाई’ भी थे, जो मेरी खुशियों के लिए कुछ भी कर सकता है।

पा मेरे लिए ‘सुपर डैड’ हैं। कई बार होता है, जब अनजाने में मैं उनका दिल तोड़ बैठती हूं, उनकी तकलीफ़ की वजह बन बैठती हूं…..हम सबसे ऐसी बेवकूफ़ियां, ऐसी ग़लतियां होती होंगी….पर बहुत ज़रूरी है, उन सबसे बाहर निकल कर पा की प्रिंसेज बनना…..

मुझे नहीं पता कि एक राजा की रानी बनना कैसा होता है, पर मुझे ये पता है कि पा की प्रिंसेज,पा की परी बनना कैसा होता है….

बाबा की तरह ही, मैं पा की भी परी बनी रहना चाहती हूं…हमेशा…

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