खोज


‘ये क्या देख रही हो इतनी ग़ौर से? कुछ सोच रही हो क्या? कुछ दिनों से नोटिस कर रहा हूं, कुछ उलझी सी दिख रही हो। बताओ मुझे, कोई परेशानी है तो।’

हर्ष ने नंदिनी के पास कुर्सी खींचते हुए कहा। वो कुछ दिनों से नंदिनी की हालत को देख रहा था। उसे ये तो नहीं पता था कि बात क्या है पर हां, इतना अंदाज़ा उसे ज़रूर था कि नंदिनी के दिमाग में कुछ तो चल रहा है। कोई सोच, कोई परेशानी या कोई उलझन…

नंदिनी ने हर्ष की बात का कुछ भी जवाब नहीं दिया। वो वैसे ही चुपचाप बैठी खिड़की से बाहर दूर देखती रही, जैसे कुछ दिख रहा हो। नंदिनी के चेहरे पर कोई उलझन नहीं थी, चेहरे के भाव तो शांत ही थे पर आँखें सिकुड़ कर छोटी हो रखी थी, जैसे बहुत दूर की चीज़ कुछ देख रही हो। हर्ष उठकर फ्रिज़ के पास गया, वोडका की बोतल निकाली और अपने लिए एक पैग तैयार किया। वो वापस नंदिनी के पास आकर बैठ गया। नंदिनी अब भी उसी भाव के साथ, उसी मुद्रा में बैठी थी। हर्ष ने सिगरेट जलाई और धुएं के छल्ले के बीच नंदिनी को देखने लगा।

“ये कैसी कसमसाहट है…ये कैसी बेचैनी है? सारे रिश्ते मेरे आस पास ही हैं, हर्ष, मेरा प्यार…वो भी तो साथ है, फिर क्या ढूंढ रही हूं मैं? घर है, बच्चा है, पैसे हैं, नौकरी है…फिर किस बात की बेचैनी? सब प्यार भी करते हैं मुझको, फिर भी वो कौन सी उदासी है, जिसने मुझे घेर रखा है? कहने के लिए सब कुछ है, जो एक खुशनुमा ज़िंदगी के लिए चाहिए होता है, फिर वो क्या है, जो नहीं है। क्या चाह रही हूं मैं, क्या ढूंढ रही हूं, क्या पाना है मुझे, कैसे शांत होगी ये बेचैनी”
नंदिनी के दिमाग में इस तरह की जाने कितनी ही बातें सर उठा रही थीं। हर्ष नंदिनी की इस हालत को बखूबी समझ रहा था, पर वो ये नहीं समझ पा रहा था कि आखिरवो ऐसा क्या करे, जिससे नंदिनी की मदद हो सके। प्यार जो सबसे बड़ी चीज़ कर सकता है, वो है उसका बने रहना और हर्ष वही कर रहा था। कोई और होता तो शायद अपनी ज़िंदगी का रास्ता बदल देता, लोग अक्सर बदल ही देते हैं, पर हर्ष ने वादा किया था ख़ुद से कि वो रहेगा, तो बस वो था।

“तुम्हें परेशानी नहीं होती, इस तरह मेरे साथ रहने में?”
इतनी देर में नंदिनी ने पहली बार कुछ बोला था। वो अपनी कुर्सी से उठी, कमर तक लहराते बालों को समेट कर जूड़ा बनाया और डायनिंग टेबल पर रखे बर्तन समेटने लगी।
“नहीं, मैंने जानबूझ कर इस परेशानी को चुना है। बहुत इंट्रेस्टिंग है ये परेशानी। नादां होंगे वो लोग, जो कभी इस परेशानी से भागे होंगे”
हर्ष ने बहुत ही गौर से नंदिनी को देखते हुए कहा।

नंदिनी हर्ष की ऐसी बातों पर हमेशा हंसती। आज भी एक हल्की मुस्कान उसके चेहरे पर आई। वो वापस पलट कर हर्ष के पास आई और अपने घुटने के बल पर बैठकर हर्ष की जांघों पर सर टिकाया।

“होता है, हम सब कुछ ना कुछ ढूंढते हैं और कई बार पता नहीं रहता कि वो क्या है। अगर तुम्हारे साथ भी ऐसा ही हो रहा है, तो क्या हो गया? मैं हूं ना साथ, मिल कर ढूंढेंगे। क्या पता, वो पास ही हो, पर हमें दिख ना रही हो या समझ में ना आ रही हो। चाहे जो भी हो, मैं हूं तुम्हारे साथ। बस तुम यूं खोना बंद करो। तुम खो जाती हो तो मेरे लिए तुमको ढूंढना मुश्किल हो जाता है। जितना सुकूं देती नहीं, इन पलों में उससे ज़्यादा ले लेती हो। फिर में सिर्फ एक ही चीज़ ढूंढ सकता हूं ना, तो कम से कम तुम मत खोया करो।”

नंदिनी ने सर उठाकर हर्ष को देखा। आंसू के साथ एक हल्की हंसी भी थी। हर्ष नंदिनी के बालों में हाथ फेर रहा था…नंदिनी के पास कुछ तो ऐसा था, जिसे उसे कभी नहीं ढूंढना था…

 

2 thoughts on “खोज

  1. जाने क्या ढ़ूँढ़ती रहती हैं ये आँखें मुझमें…
    राख़ के ढ़ेर में शोला है ना चिंगारी है…

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