सेक्स एक ऐसा वर्ड है, जिसके बारे में सोचते सब हैं, पर कोई उस पर खुलकर बात नहीं करना चाहता। डायरेक्टर मिखिल मुसाले ने सोचा कि सबको समझाना चाहिए कि जिस तरह हम बाकी सारी बीमारियों के बारे में बात करते हैं, सेक्स समस्या को भी उतनी ही सहजता से लेना चाहिए, इसलिए उन्होंने बनाई ‘मेड इन चाइना’।
इंडिया में एक चीनी अॉफिसर की मौत होती है, जो मरने से ठीक पहले टाइगर सूप पीता है। शक की सुई रघुवीर मेहता (राजकुमार राव) की तरफ जाती है, जो सेक्सोलॉजिस्ट डॉक्टर वर्धी (बोमन ईरानी) के साथ मिलकर इस सूप का बिजनेस करता है क्योंकि इसको पीने से गुप्त रोग की समस्या दूर होती है। सेक्स के नाम पर इतना बवाल है तो सेक्स समस्या बताने पर क्या होगा और उसकी दवाई बेचने पर क्या होगा, ये बात फ़िल्म में दिखाई गई है।
मिखिल ने टॉपिक बहुत सही उठाया, पर वो रास्ता भटक गए। क्या दिखाना चाहते थे और क्या दिखा गए। डायरेक्शन और स्क्रिप्ट कमज़ोर होने की वजह से एक अच्छी फ़िल्म बनते बनते रह गई। जब मैं ये फ़िल्म देख रही थी तो मुझे कुछ समय पहले आई ‘ खानदानी शफ़ाखाना’ की याद आ गई। उस फ़िल्म में भी सेक्स को टैबू बनाने वाली बात पर फोकस किया गया था। वैसे तो मिखिल को गुजराती फ़िल्मों में नेशनल अवॉर्ड मिला हुआ है, पर अपनी इस पहली बॉलीवुड फ़िल्म में वो कंफ्यूज़ हो गए। कॉमेडी के सहारे वो गंभीर मुद्दा दिखाना चाहते थे, स्टारकास्ट भी मजबूत थी पर फिर भी फ़िल्म अच्छी नहीं बन पाई। सेकेंड हाफ के लास्ट में थोड़ा इंट्रेस्ट आता है पर आखिरी में कई सवाल मन में ही रह जाते हैं। म्यूज़िक भी कुछ खास नहीं रहा फ़िल्म का।
एक्टिंग की बात करूं तो राजकुमार राव की एक्टिंग अच्छी है। गुजराती बिजनेसमैन के रोल में उन्होंने चाल-ढाल बहुत सही पकड़ी है। बोमन ईरानी का काम भी उम्दा है। डॉक्टर वर्धी के रोल में वो पूरी तरह फिट बैठे हैं। एक तरीके से फ़िल्म यही दोनों लेकर चले हैं। नो डाउट, दोनों ही बहुत कमाल के कलाकार हैं। मौनी रॉय के हिस्से बहुत कुछ नहीं था, ग्लैमर फैक्टर के लिए फिट थी वो। इसके अलावा गजराज राव, सुमित व्यास, परेश रावल का काम भी अच्छा रहा।
अगर राजकुमार राव आपको इस लेवल पर पसंद है कि उनकी कैसी भी फ़िल्म आप देख सकते हैं, तभी इसी फ़िल्म को देखने का प्लान कीजिए, वर्ना आप निराश ही होंगे।