‘बदलना क्यों है?’ – ‘बाला’


तो आज ‘बाला’ आ गई। वो ‘बाला’ नहीं, जिसका गाना अक्षय गा रहे हैं। वो ‘बाला’ आ गई जिसमें आयुष्मान खुराना, भूमि पेडनेकर और यामी गौतम हैं। वो ‘बाला’, जो बहुत ज़्यादा कंट्रोवर्सी में रही। वो ‘बाला’, जिसे डायरेक्ट किया है अमर कौशिक ने।

कहानी बाल मुकुंद शुक्ला उर्फ बाला की है, जिसको बताते हैं विजय राज अपनी आवाज़ में। लहराते बालों की वजह से नाम ‘बाला’ पड़ा, पर बड़े होते ही हो गई गंजेपन की शिकायत। स्कूल में अपने टीचर को टकला कहने वाला ‘बाला’ खुद ही टकला हो गया। कानपुर का सेल्समैन, जो ब्यूटी प्रोडक्ट्स बेचता है। ऑफिस और समाज में बहुत पूछ नहीं है बाला की, क्योंकि अगर बाल नहीं, तो आप कमाल नहीं। गर्लफ्रेंड भी नहीं है। मिमिक्री करके वो कॉमेडी करता है और लोगो को हंसाता है। एक दिन बाला के पिताजी उसको विग गिफ्ट करते हैं, और बाला को मिल जाती है लखनऊ की एक टिक टॉक सेलिब्रेटी। अब इस विग की कहानी में क्या क्या होता है, वही ‘बाला’ की कहानी है।

अमर कौशिक ने एक बहुत अच्छे विषय को कॉमेडी और ट्रेजिडी के रूप में दिखाकर उसे असरदार तो बनाया ही है,एक बहुत अच्छा मैसेज भी दिया है। कानपुर और लखनऊ को लिया गया है कहानी में। तारीफ करनी होगी राइटर और सिनेमेटोग्राफर की, जिन्होंने इन दोनों ही शहरों का फ्लेवर मस्त पकड़ा है। शब्द से लेकर जगह तक, हर चीज़ में वो लोकल टेस्ट मिलता है। तारीफ करनी होगी निरेन भट्ट की, जिनके लिखे डायलॉग्स ने फ़िल्म को और भी ज़्यादा मजबूत बनाया है। वन लाइनर्स कमाल के हैं फ़िल्म में। कुछ तो बहुत ही क्लिक करते हैं-
बाला का कहना कि ‘हमारा चमन उजड़ रहा है, बचा लीजिए’।
‘जितने विकेट बचे हैं, उसमें अपनी इनिंग बचा लो। ऑल आउट होने के बाद कुछ बचेगा नहीं।’
‘असली और असलियत का मेल होता नहीं ज़िंदगी में’।
‘हेयर लॉस नहीं, आइडेंटिटी लॉस हो रहा है हमारा’।
‘पूरी यूपी भगवान भरोसे है’।

फ़िल्म में आपको ‘प्यार का पंचनामा’ वाले मोनोलॉग की याद भी आएगी, जब बाला का भाई कुछ वैसा ही डायलॉग एक स्ट्रेच में बोलेगा और आपको ज़बरदस्त हंसी आएगी। जावेद जाफरी का एक डायलॉग भी बहुत कुछ इशारा करके जाता है- हमारा समाज पुरूष प्रधान समाज है। मर्दों का नुस्ख़, नुस्ख़ नहीं समझा जाता।कुब्जा और कृष्णा की कहानी को दिखाकर भी अमर कौशिक ने बहुत कुछ समझा दिया है। फ़िल्म में छोटी छोटी बातों का पूरा ध्यान रखा गया है। बाला का घर आपको बहुत ही अपना सा लगेगा। बाला का अपने पिता के साथ और बाला के पिता का अपने ससुर के साथ रिश्ता भी बहुत मज़ेदार दिखाया गया है। थोड़ा और उसको स्टैबलिश करते तो अच्छा रहता। फ़िल्म में फैंटम वाली सिगरेट आपको अपने बचपन की याद दिला सकती है। फ़िल्म में टिक टॉक का यूज़ भी ऐसे पहली बार देखने को मिला है, जो इंट्रेस्टिंग लगता है। फर्स्ट हाफ में फ़िल्म बहुत हंसाती है, सेकेंड हाफ में वो मेन मुद्दा उठाती है। हॉं, कई जगह लगता है कि ये वाला पोर्शन थोड़ा और मजबूत होता, तो सही होता। पर ओवर ऑल फ़िल्म को आप इतना इंजॉय करते हैं, सारे किरदारों के भाव को समझते हैं, कहानी के मैसेज को समझते हैं तो इन कमियों में बहुत अटकते नहीं। अभी पिछले सप्ताह ‘उजड़ा चमन’ भी आई थी। मुझे लगा था कि दोनों एक जैसी ही फ़िल्में हैं, पर ऐसा नहीं है। दोनों में बस गंजेपन की समस्या कॉमन है, बाकी स्टोरी लाइन पूरी अलग है।

एक्टिंग के मामले में यहॉं आयुष्मान और भूमि, दोनों ने बाजी मारी है। आयुष्मान खुराना का अपना एक स्टाइल है और वो मिडिल क्लास लाइफ की स्टोरी के लिए परफेक्ट बैठते हैं। कानपुर के टोन और स्टाइल को उन्होंने बहुत ही अच्छे से पकड़ा है। मेकअप भी पूरी तरह फिट बैठा है। आयुष्मान की कॉमिक टाइमिंग और ट्रेजिडी टाइमिंग इतनी परफेक्ट होती है कि आप हंसते भी हैं और उसको महसूस भी करते हैं। मेकअप के मामले में भूमि का मेकअप थोड़ा 19 ही लगता है, पर एक्टिंग के मामले में वो बिल्कुल भी पीछे नहीं रहती। धड़ाधड़ फ़िल्में करती जा रही हैं और हर फ़िल्म में वो एक्टिंग का लोहा भी मनवा रही हैं। सांवली लड़की की तकलीफ वो बहुत अच्छे से पर्दे पर लेकर आई हैं। सौरभ शुक्ला तो मुझे इतने परफेक्ट लगते हैं कि उन्हें आप चाहे जैसा भी रोल दे दीजिए, वो बाजी मार ही लेंगे। जावेद जाफ़री ने अमिताभ को मस्त कॉपी किया है। फिल्म के लास्ट में आयुष्मान खुराना, जावेद जाफरी और तीसरे किरदार की मिमिक्री करने वाला सीन मज़ेदार है, पर उनका कैरेक्टर बहुत जस्टीफाई नहीं होता। यामी गौतम का काम ठीक रहा है। फ़िल्म में विजय राज की आवाज़ कहानी को और भी ज़्यादा इंट्रेस्टिंग बनाती है। सीमा पाहवा एक बार फिर से अपने किरदार में पूरी तरह घुस गई हैं और सबको हंसाने के लिए तैयार हैं। अभिषेक बैनर्जी का काम भी इंप्रेसिव है।

म्यूज़िक ठीक ठाक सा है फ़िल्म का। फ़िल्म देखते हुए वो ठीक लगते हैं, क्योंकि लिरिक्स बहुत अच्छी है, पर बाद में कुछ भी याद हीं रहता। कानपुर की कहानी में पंजाबी गाना कैसे फिट होता है, वो तो मुझे नहीं पता, पर यहॉं डाल दिया गया है। ‘नाह सोणिए’ सुन चुके हैं तो यहां भी सुनने में अच्छा लगता है। ‘टकीला’ सॉन्ग मस्त है। ‘प्यार तो था’ गाना बहुत फील नहीं होता। लास्ट में क्रेडिट रोल के साथ बादशाह का गाना ‘डोन्ट बी शाय’ अच्छा लगता है।

फ़िल्म में एक टैबू को खत्म करने की कोशिश की गई है। यामी का ये कहना कि ‘बाथरूम में आधा ढका शीशा देखा, तो जब ये खुद ही अपना ये चेहरा नहीं देख सकते तो ये हमसे कैसे एक्सपैक्ट कर सकते हैं कि हम इनका ये चेहरा पूरी ज़िंदगी देखेंगे’ – बहुत सारी बातों की तरफ इशारा कर जाता है। फ़िल्म में ये बात बोलकर समझाई गई है कि गई हुई सरकार वापिस आ सकती है, रूठी हुई गर्लफ्रेंड वापिस आ सकती है पर गए हुए बाल वापिस नहीं आ सकते। आयुष्मान आखिरी में कहते हैं कि बदलना क्यों है? अगर आप अपने आप से प्यार करते हैं तो दुनिया भी आपसे प्यार करेगी। इन सब बातों को समझने के लिए ये मज़ेदार फ़िल्म आप अपनी फैमिली के साथ देख सकते हैं। फिर आप खुद ही कहेंगे कि ‘come and fall in love with your self.

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