उलझ कर समझ आती है ‘लव आज कल’


1990 का लव, 2020 का लव….दोनों में बस एक ही चीज़ कॉमन है, वो है लव। वर्ना तो दोनों ज़मानों की सोच, उलझन, परेशानियॉं…सब कुछ ही अलग हैं।

इम्तियाज़ अली ने 2020 की अपनी फ़िल्म ‘लव आज कल’ में इन्हीं दो ज़मानों की बात की है। रघु और लीना, जो कि 1990 की जोड़ी है, वही वीर और ज़ोइ 2020 की। फ़िल्म में दोनों ही कहानियॉं एक साथ चलती हैं और एक जगह आकर टकराती हैं।

मैं हमेशा से ही इम्तियाज़ अली की फ़िल्मों की फैन रही हूं। जिस गहरी सोच के साथ वो कहानी कहते हैं, वो सब नहीं कर सकते। प्यार की परेशानियॉं, उनके कॉम्प्लिकेशन को दिखाने में वो एक्सपर्ट हैं। पर इस बार मामला थोड़ा अलग हो गया। जब फ़िल्म का इंटरवल हुआ तो मैं सोचने लगी कि कितना सही दिखाया है। ऐसा ही तो होता है। मैं उस भाव से लोगों को देख रही थी कि जैसे मैं समझ रही हूं, आप भी वैसा ही समझ रहे हैं क्या? पर सेकेंड हाफ में मेरी सोच थोड़ी रूक गई। वो जो दिखाना चाह रहे हैं, बताना चाह रहे हैं, वो समझ में आ रहा था…महसूस भी हो रहा था, पर लगा कि किरदार बहुत अच्छे से गढ़े नहीं गए। प्यार कॉम्प्लिकेटेड होता है, वो कभी भी परफेक्ट नहीं हो सकता वाली उनकी सोच सही लगी, पर पर्दे पर वो उतने प्रभावी तरीके से नहीं दिखा। जहॉं फर्स्ट हाफ में मैं कहानी से जुड़ा महसूस कर रही थी, बाद में मुझे वो बस फ़िल्म लगने लगी।इम्तियाज़ की फ़िल्मों के डायलॉग्स बहुत कैची होते हैं, जो दिमाग में रह जाते हैं। इस फ़िल्म की भी कुछ लाइन्स दिमाग में रहने वाली हैं। ‘बहुत जगह ऑप्शन हैं, बहुत जल्दी कमिटमेंट कर दिया यार, ग़लती हो गई’ जैसी लाइन से लोग कनेक्ट करने वाले हैं।

किरदारों की एक्टिंग पर भी बहुत निर्भर करता है कि वो कहानी को दिल तक पहुंचाने में कितने सफल होते हैं। अपने ही धुन में खोए रहने वाला, आना तो पूरी तरह आना,या तो नहीं आना कहने वाले वीर के रोल में कार्तिक आर्यन का काम अच्छा है। रघु का ब्रेक डांस हो या वीर का इमोशनल सीन, कार्तिक ने अपनी तरफ से उसमें जान डालने की कोशिश की है। ज़ोई के रोल में सारा अली खान थी। काम उनका अच्छा है पर वो बहुत सारी जगह लाउड लगी हैं। इमोशनल सीन में उनकी ओवर एक्टिंग परेशान करती है। डायलॉग बोलते हुए उनका खुला मुंह भी डिस्टर्ब करता है। उनके पास बहुत सॉलिड मौका था, पर वो उसे बहुत अच्छे से ले नहीं पाईं। लीना के रोल में आरुषि शर्मा का काम अच्छा है। अपने किरदार में वो पूरी तरह फिट बैठी हैं। पूरी फ़िल्म में सबसे कम स्पेस मिला है रणदीप हुड्डा को, पर काम उनका सबसे बेहतरीन रहा है। ज़रा सी देर के लिए आएंगे, पर दिलो दिमाग पर बस वही छाएंगे।

गाने ठीक हैं फ़िल्म के। ‘शायद’ और ‘हॉं मैं ग़लत’ याद रहने वाले गाने हैं। इम्तियाज़ अली की फ़िल्मों के फैन हैं, तो एक बार देख सकते हैं फ़िल्म को। थोड़ी बहुत परेशानी के साथ भी अगर इश्क़ की ए बी सी डी भी समझ आ जाए, तो क्या बुरा है।

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