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‘शुभ मंगल सावधान’ हम सबने देखी। हम हंसे भी और एक बेहद महत्वपूर्ण टॉपिक को हमने हंसते हंसते समझा भी। एक बार फिर से आयुष्मान खुराना एक डिफरेंट टॉपिक की तरफ ध्यान खींचने आ गए हैं, जिसका नाम है ‘शुभ मंगल ज़्यादा सावधान’। फ़िल्म को डायरेक्ट किया है हितेश केवल्या ने।
फ़िल्म एक गे लव स्टोरी है। कार्तिक और अमन का प्यार, जिसे परिवार स्वीकार नहीं कर पाता है। क्या क्या स्यापे होते हैं, यही बात फ़िल्म में दिखाई गई है।
हितेश केवल्या ने कॉमेडी के रूप में समाज की उस मान्यता को तोड़ने की कोशिश की है, जो 377 की धारा को स्वीकार नहीं कर पाया है। फ़िल्म में हंसी भी आएगी और बातों ही बातों में बात भी समझ आएगी। फ़िल्म के डायलॉग्स अच्छे हैं। ‘शादी ना हुई, एंटीबायटिक हो गया, जिसका कोर्स करना ज़रूरी है’ जैसे डायलॉग जहॉं एक तरफ हंसाएंगे, वहीं पर कुछ डायलॉग्स दिल तक पहुंचेगें। अमन के पिता का ये कहना कि ‘हमें नहीं पता कि हम ये समझ पाएंगे या नहीं, पर हमारी समझ की वजह से तुम्हें आधी अधूरी ज़िंदगी जीने की ज़रूरत नहीं’ बहुत कुछ समझा कर जाता है। कार्तिक का ये कहना कि हम गे लोग हर दिन लड़ते हैं, पर कोई भी लड़ाई उतनी हार्ड नहीं होती, जो अपने परिवार से होती है, उनकी मनोदशा को समझा कर जाता है। ‘शुभ मंगल सावधान’ की तरह ही यहॉं भी बड़ी सी फैमिली है, पर इस बार इस फ़िल्म में ये फैमिली कहानी को उलझाने का काम करती है। नीना गुप्ता और गजराज राजके बीच के सीन्स को डालने की ज़रूरत नहीं थी, पर वो रखे गए। गजराज राज और मनु ऋषि के बीच की बॉन्डिंग हंसाती है पर आगे चलकर वो भी जबरदस्ती डाली गई लगती है। कई जगह ऐसा भी लगता है कि ज़बरदस्ती हंसाने की कोशिश की जा रही है।
इस फ़िल्म में गाने ज़ुबान पर चढ़ ही चुके हैं। ‘मेरे लिए तुम काफी हो’ ‘अरे प्यार कर ले’ ‘प्यार तेनु करदा गबरू’ सुनने में अच्छे लगते हैं।’क्या करते थे साजना’ गाने को अलग अंदाज़ में इस्तेमाल किया गया है, जो इंट्रेस्टिंग लगता है।
आयुष्मान खुराना ने फिर से अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया है। बहुत ही कंफर्टेबल नज़र आए हैं वो अपने इस कैरेक्टर में। जितेन्द्र कुमार ने बहुत ही सहज तरीके से इस रोल को किया है, जिसकी वजह से उनका किरदार विश्वसनीय लगता है। फ़िल्म में सबसे ज़्यादा वही उभर कर आते हैं। गजराज राज का काम अच्छा है। बस डर ये है कि वो एक ही तरह की एक्टिंग में बंध कर ना रह जाए। नीना गुप्ता भी अपनी जगह अच्छी लगी हैं। मनु ऋषि और सुनिता के सीन्स मज़ेदार हैं। दोनों का काम अच्छा है। इसके अलावा मानवी गगरू और पंखुड़ी अवस्थी भी अपने किरदार में सही लगे हैं।
प्यार की आज़ादी सभी को होनी चाहिए। जो जैसा है, उसको उसी रूप के साथ स्वीकर करना चाहिए। ये कुछ ऐसे मुद्दे हैं जो हंसी के साथ ही उठाए जा सकते हैं। इस फ़िल्म ने भी यही कोशिश की है। आयुष्मान और जीतू के इस साहसी कदम के लिए एक बार ये फ़िल्म देख सकते हैं।