बहुत ज़रूरी है ये ‘थप्पड़’


‘घर समेट कर रखने के लिए औरतों को मन मारना ही पड़ता है’- अमृता की मॉं उससे ये बात कहती है। अमृता की मॉं को ये बात उनकी मॉं ने सिखाई थी और उनकी मॉं को उनकी मॉं ने कही थी। यही वो बात है, जो ज़्यादातर औरतों के दिमाग में फीड कर दी जाती है और यही कारण है कि अपने परिवार के लिए मर मिटने को ही औरत अपना पहला धर्म समझ लेती है।

अनुभव सिन्हा की फ़िल्म ‘थप्पड़’ की अमृता यानि अमू भी इस बात से अछूती नहीं है। अलार्म बजते के साथ ही उसे बंद करना, जिससे उसके पति विक्रम की नींद ना टूट जाए, घर के बाहर से पेपर और दूध लेना, लेमन ग्रास काट कर चाय बनाना, घर के टेरेस पर चाय पीते हुए फोटो क्लिक करना, विक्रम को उठाना, नाश्ता देना, घर के बाहर आकर उसको हाथ में वॉलेट देकर ऑफिस के लिए विदा करना, सास का शुगर चेक करना, एक प्यारी सी बच्ची को डांस सिखाना, घर ठीक रखना….ये एक फिक्स सी लाइफ अमू काफी लंबे समय से जी रही थी। इन सबके बदले उसने सिर्फ दो ही चीज़ें चाही- प्यार और इज़्ज़त। अचानक ही एक पार्टी में पति के एक थप्पड़ ने मानो अमू को किसी सपने से जगा दिया।

अनुभव सिन्हा ने बहुत ही खूबसूरती और इत्मिनान के साथ वो कहानी दिखा दी है, जो लोगों को सोचने पर मजबूर कर देगी। उन्होंने कहानी की शुरूआत में ही औरेंज बार खाते हुए सारे कैरेक्टर्स को मिलवा दिया है। कहानी अमू की है,पर साथ ही साथ उसकी मॉं (रत्ना पाठक शाह), सास (तन्वी आज़मी), डिवोर्सी पड़ोसी (दिया मिर्ज़ा), घर में काम करने वाली बाई, वकील नेत्रा (माया सराओ) की भी है। अमू की वजह से ये सारे किरदार अपने अंतर्द्वन्द से लड़ते हैं। उन्हें भी अपनी सोच को समझने का मौका मिलता है।

बैकग्राउंड म्यूज़िक का कम इस्तेमाल है, जिसकी वजह से सब कुछ ज़्यादा रियल लगता है। कहानी धीरे धीरे चलती है और उसकी भी वजह है।अमू एक हाउस वाइफ है और अनुभव सिन्हा ने उसकी सोच, उसके इमोशंस को सहज तरीके से ही आगे बढ़ाया है। समाज में जहॉं थप्पड़ को कोई ऐसी वजह नहीं मानी जाती, जिसकी वजह से तलाक़ की नौबत आए, ऐसे में कहानी अगर फास्ट बढ़ती तो वो आर्टिफिशियल लगती। कई रिश्ते हैं फ़िल्म में और सबकी खूबसूरती अपनी जगह बहुत ज़्यादा है। अमृता और उसके पिता के बीच का प्यार दिल छूने वाला है, वही समाज की सोच में फंसी उसकी मॉ की चिंता भी स्वाभाविक है। दिया मिर्ज़ा का तापसी को गले लगाना जहॉं दिल को छूता है वही काम वाली बाई और उसके पति के बीच का रिश्ता एक कड़वी सच्चाई को बयां करता है।

डायलॉग्स अच्छे हैं। कुछ कुछ लाइन्स तो दिमाग में सीधे घुसती हैं। कुछ लोग दूसरों की खुशियों में ही अपनी खुशी ढूंढ लेते हैं और मम्मियों के पास ज़्यादा ऑप्शन नहीं होता, सुनते ही सबसे पहले अपनी मॉं दिमाग में आती है। थप्पड़ के बाद अमू की सास का कहना कि ‘चलो, मेहमान हैं बाहर। क्या सोचेंगे?’ आपके अंदर हैरानी और गुस्सा दोनों पैदा करता है। अमू के पति का ये कहना कि मुझे वहॉं रहना ही नहीं, जहॉं इज़्ज़त ना हो, बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करता है। अमृता के पिता का ये डायलॉग कि ‘कई बार सही करने का रिज़ल्ट हैप्पी नहीं होता’ आपको समझा जाता है कि हर निर्णय की अपनी एक कीमत होती है। फ़िल्म में गोद भराई वाला सीन अल्टीमेट है। अमू और उसकी सास के बीच की बातचीत पूरी फ़िल्म का पैसा वसूल करवा देती है।

अमृता के रोल में तापसी पूरी तरह फिट बैठी हैं। हर रिश्ते के साथ उनके किरदार की खूबसूरती अलग और मजबूत दिखी है। पार्टी में डांस करते हुए मस्ती हो, या अपनी ही सोच में उलझना हो, तापसी ने उसे बहुत अच्छे से दिखाया है। विक्रम के रोल में पावेल गुलाटी का काम भी बहुत सही है। पहली ही फ़िल्म में एक ही किरदार के कई रंग उन्होंने दिखाए हैं और इसमें अभिनय उनका बहुत अच्छा रहा है। कुमुद मिश्रा ने पिता के रोल में जान डाल दी है। रत्ना पाठक शाह भी अपने रोल में कमाल की लगी हैं और इन दोनों की जोड़ी भी जंची है। इसके अलावा दिया मिर्ज़ा, तन्वी आज़मी, मानव कौल, माया सराओ और काम करने वाली बाई ता काम भी अच्छा है।

फ़िल्म में एक ही गाना है -‘एक टुकड़ा धूप’, जो कहानी और मन के साथ पूरी तरह फिट बैठता है।

‘मुल्क’ और ‘आर्टिकल 15’ के बाद ये अनुभव सिन्हा की तीसरी फ़िल्म है, जहॉं समाज एक बार फिर से सोचने पर मजबूर हो जाएगा। समाज और धर्म पर प्रहार करने वाले अनुभव ने इस बार पारिवारिक मुद्दा उठाया है। ये क्रूशियल और ज़रूरी फ़िल्म है। ‘थप्पड़’ बनाकर अनुभव सिन्हा ने कई सोच पर करारा तमाचा लगया है। पुरूष प्रधान समाज में जहॉं कोई अकेली औरत कार भी चेंज करे तो सवाल उठता है कि ये करती क्या है और ये फ़िल्म इस बात का जवाब देती है ‘मेहनत’। इस फ़िल्म के बाद ये उम्मीद तो हो गई है कि कोई भी अब थप्पड़ मारने से पहले सोचेगा तो ज़रूर क्योंकि है तो एक थप्पड़, पर नहीं मार सकता।

मॉं, बाप, दोस्त, गर्लफ्रेंड, ब्वॉयफ्रेंड, भाई बहन, बच्चे….सभी को ले जाइए और इस ज़रूरी और खूबसूरत फ़िल्म को ज़रूर देखिए।

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