ज़्यादा समझ नहीं आती ये ‘अंग्रेज़ी मीडियम’


‘हिंदी मीडियम’ के 3 साल बाद अब आ गई है ‘अंग्रेज़ी मीडियम’। ‘हिंदी मीडियम’ में स्कूल में एडमिशन के लिए पापड़ बेलना पड़ा था, ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ में लंदन की एक यूनिवर्सिटी में एडमिशन के लिए पापड़ बेलना पड़ता है।

कहानी उदयपुर में रहने वाले एक बाप (इरफ़ान ख़ान) और उसकी बेटी ( राधिका मदान) की है। बेटी पढ़ने में बहुत तेज़ नहीं है, पर उसको लंदन में एडमिशन चाहिए। अब बेटी के सपने को पूरा करने के लिए एक बाप को क्या क्या पापड़ बेलने पड़ते है, यही चीज़ फ़िल्म में दिखाई गई है।

फ़िल्म की शुरूआत में ही पर्दे पर लिखा आता है – ‘पिता- वह मूर्ख जीव, जो बालक प्रेम में सब तुछ नियौछावर रखने का सामर्थ्य रखता है’। डायरेक्टर होमी अदजानिया ने फ़िल्म की शुरूआत में ही साफ कर दिया कि ये फ़िल्म पिता की ज़िम्मेदारियों को दिखाने वाली है। फ़िल्म के फर्स्ट हाफ के बाद ये उम्मीद उठती है कि शायद अब फ़िल्म में स्पीड आएगी और कहानी थोड़ी टाइट मिलेगी, पर ऐसा नहीं होता है। टॉपिक अच्छा, मैसेज अच्छा पर कमज़ोर स्क्रिप्ट ने मामला गड़बड़ा दिया। एडिटिंग से कहानी को भी क्रिस्प किया जा सकता था, पर वो नहीं हुआ। गानों को नज़र अंदाज़ करके इसकी लंबाई भी ठीक की जा सकती थी। ये सब मामले भी सैटेल हो जाते अगर डायरेक्शन वैसा होता। कहानी बहुत ज़्यादा बांध कर नहीं रख पाती। अनजाने में ही आप इसकी तुलना ‘हिंदी मीडियम’ से करने लगते हैं क्योंकि उस फ़िल्म की कहानी से खुद को जोड़ पाना आसान था। उस फ़िल्म में वो फैक्टर था, जिससे आप जुड़े रहे, जबकि ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ में वो बात मिसिंग लगती है। ऐसा लगा कि एक साथ बहुत सारे मुद्दे उठाने के चक्कर में होमी अदजानिया इस फ़िल्म को वो मजबूती नहीं दे पाए, जो इसे मिलनी चाहिए थी।

कमज़ोर स्क्रिप्ट के बाद भी इस फ़िल्म को जो जान मिली है, वो इसमें काम कर रहे कलाकारों की वजह से मिली है। इरफ़ान ख़ान को इतने लंबे समय बाद देखना बहुत ही अच्छा लगा। ऐसा क्या है, जो वो नहीं कर सकते। इमोशनल सीन हो, कॉमिक सीन हो, उन्होंने जान डाल दी है। पिता के इमोशंस को उन्होंने बहुत ही अच्छे तरीके से दिखाया है। कमाल की बात ये है कि वो इतनी सहजता के साथ ये सब करते हैं कि सब कुछ बहुत नैचुरल लगता है। उन्हें जब जब देखती हूं, हमेशा एक ही बात मन में आती है, वो हमेशा ही ठीक रहें। इरफ़ान के भाई के रोल में दीपक डोबरियाल की एक्टिंग भी परफेक्ट रही है। इरफ़ान और दीपक की जोड़ी भी जानदार है। राधिका मदान भी अपने किरदार में पूरी तरह फिट बैठी हैं। बोलने का टोन उन्होंने सही पकड़ा है। कीकू शारदा और रणवीर शौरी का काम भी ठीक रहा है। एक ही सीन में आकर पंकज त्रिपाठी ने जान डाल दी है। करीना कपूर ख़ान, डिंपल कपाड़िया और तिलोत्मा शोम के हिस्से बहुत कुछ था नहीं। शायद इरफ़ान के प्यार में सबने ये फ़िल्म की हो।

फ़िल्म का नाम ‘अंग्रेज़ी मीडियम’ क्यों रखा गया, ये समझ नहीं आता क्योंकि ऐसे किसी टॉपिक पर इसमें कोई बात नहीं की गई है। जो समझ में आता है, वो है बाप बेटी का रिश्ता। ‘हिंदी मीडियम’ सोचकर जाएंगे, तो बहुत निराश होंगे। इरफ़ान ख़ान और दीपक डोबरियाल को देखने जाएंगे, तभी चेहरे पर स्माइल आएगी।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *