‘शकुंतला देवी’ रिव्यू


मैथमेटिशियन, एस्ट्रॉलॉज़र और राइटर शकुंतला देवी की बायोपिक अमेज़ॉन प्राइम पर आ चुकी है, जिसका नाम ‘शकुंतला देवी’ है। विद्या बालन निभा रही हैं शकुंतला देवी का किरदार। इस फ़िल्म को डायरेक्ट किया है अनु मेनन ने।

‘ह्युमन कंप्यूटर’ के नाम से जानी जाने वाली शकुंतला देवी, जिनका नाम ‘गिनीज़ बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड’ में भी शामिल हुआ, उनकी ज़िंदगी कैसी रही, अनु मेनन ने उसको बहुत ही अच्छे से दिखाया है। शकुंतला देवी के बारे मे कम ही लोग जानते हैं। बिना स्कूल जाए उनकी कैलकुलेशन की स्पीड, परिवार की परेशानियॉं, बहन का जाना, प्यार में धोखा, अकेलापन, शादी, बच्चा, करियर….बहुत कुछ था शकुंतला देवी की असाधारण सी ज़िंदगी में। अनु मेनन ने केवल शकुंतला देवी के नंबर्स और कैलकुलेशन को ही नहीं दिखाया है। एक औरत और मॉं के रोल में उनकी ज़िंदगी के जोड़ घटाव को भी दिखाया है। नंबर्स को आसानी से सुलझाने वाली दबंग महिला, जो हमेशा कहती हैं कि ‘मैं कभी नहीं हारती, always remember that’, अपनी ज़िंदगी की उलझनों को उतनी आसानी से नहीं सुलझा पाती। फ़िल्म में कुछ डायलॉग्स अपनी तरफ ध्यान खींचते हैं – ‘एक लड़की जो खुलकर हंसती है, अपने सपने पूरा करती है, मर्दों के लिए उससे डरावना क्या होगा?’ या शकुंतला देवी के पति का ये कहना कि ‘मैं तुम्हारी तरह बंजारा बनकर नहीं रह सकता’ और शकुंतला देवी का ये जवाब देना कि ‘मैं तुम्हारी तरह पेड़ बनकर नहीं रह सकती’, पति पत्नी के बीच आई दरार को दिखाता है। ‘मैंने अपनी मॉं को सिर्फ मॉं की तरह देखा, एक औरत की तरह देखा ही नहीं’, ये लाइन सभी को खुद से सवाल करने पर मजबूर करेगी। फ़िल्म का म्यूज़िक कुछ ख़ास नहीं है, पर सिनेमेटोग्राफी ध्यान खींचती है। इसके अलावा एटिडिंग भी फ़िल्म की सही रही है।

विद्या बालन ने एक बार फिर से वुमेन सेंट्रिक फ़िल्म की है। ‘डर्टी पिक्चर’ और ‘तुम्हारी सुलु’ में भी विद्या बालन को हम ऐसे किरदार निभाते देख चुके हैं, पर विद्या कसम, एक बार फिर से वो इसमें जमी हैं। कहानी के पहले हिस्से में वो पूरी तरह बॉंध कर रखती हैं। बहुत ही बेफिक्री और बिंदास तरीके से उन्होंने ये किरदार निभाया है। शकुंतला देवी का सेंस ऑफ ह्यूमर, उनकी ज़िद, उनकी तकलीफ़,उनका अकेलापन…विद्या बालन के ऊपर पूरी तरह फिट बैठा है। फ़िल्म में उनका मेकओवर भी अच्छा लगा है। शकुंतला देवी के पति परितोष बैनर्जी का रोल जीशू सेनगुप्ता ने निभाया है। एक परिपक्व किरदार को उन्होंने अपने मैच्योर एक्टिंग से सफल बनाया है। बेटी अनुपमा के रोल में सान्या मल्होत्रा हैं। शुरू में उनके बाल चाहे जितने भी अटपटे लगे, पर एक्सप्रेशन उन्होंने अच्छे दिए हैं। अनुपमा के पति अजय के रोल में अमित साध का काम भी अच्छा है। इतनी बड़ी हस्ती की बेटी के साथ रहने पर आने वाली स्थितियों में उनके हाव भाव अच्छे रहे हैं।

‘शकुंतला देवी’ के बारे में कुछेक बातें खटक भी सकती हैं कि चीज़ों को स्टैबलिश नहीं किया गया है। लॉजिक की बजाए इमोशन्स का सहारा लिया गया है। फ़िल्म में शकुंतला देवी को ना देखकर मॉं बेटी के रिश्ते को देखा जाए, तो कहानी फिर भी जस्टीफाइड होगी। इन सब बातों के बाद भी एक बात तो मैं कह सकती हूं कि फ़िल्म देखने के बाद चाहे जो भी दिमाग में आए, उसे देखते वक़्त तो आप एंटरटेन होंगे ही।

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