मेनका


कल रात एक सपना देखा। किसी मेनका के साथ दिखे तुम। समझ नहीं आया कि कौन थी….जानी पहचानी भी नहीं लगी… नारी सुलभ गुण सर उठाने लगा। मन में शक के कीड़े कुलबुलाने लगे…पिताजी ने बताया था कि मन पानी की तरह होता है। जिधर रास्ता मिलता है, जिधर आसानी होती है, उधर बहने लगता है। दिशा बदलने के लिए बांध बनाना पड़ता है। मैं भी बांध बनाने लगी। विश्वास का बांध, प्यार का बांध…

कभी लगता है कि जीवन क्या है, इक पहेली। कहे जो इसको वो भी पछताए, सुने जो इसे वो भी पछताए। मगर इस पहेली को तुमने इक छोटे शिशु की तरह सरल और सहज बना दिया मेरे लिए।सोचती हूं तो लगता है कि अगर तुम्हारे प्यार का किनारा ना होता तो कैसा होता। बिखरा था मेरा जीवन… तुमने चुन लिया तो मैं भी सिमट गई। वो होता है ना कि खेत सूखा पड़ जाता है। मैं भी वैसे ही सूखी थी। तुम्हारा प्यार बरसा, मैं आषाढ़ सावन बन गई। मेरी जिंदगी के जैसे तुम सूत्रधार बन गए हो। अब तक जैसे बिना धागे के सुई जैसी थी जिंदगी। चुभती तो थी पर कुछ सिल नहीं पाती थी। कटे पंतग की तरह ये दुनिया ललचाती तो थी मुझे पर कम्बख़्त हाथ नहीं आती थी…पर देखो ना, कितना कुछ बदल गया। तुमने मुझमें और मैंने तुममें, हम दोनों ने इक दूसरे में अपनी जिंदगी के अर्थ को समझा। क्या समझते हो इस बात का अर्थ जब मैं चहचहा के कहती हूं कि तुम मुझे बहुत अच्छे लगते हो? उस मेनका ने भी ऐसा ही कुछ कहा क्या?

करूणा आंटी से मिली थी तो पता चला कि अंकल चले गए उनकी सौत के साथ। हाए रे किस्मत! जिसके लिए सब छोड़ा, उसने उन्हीं को छोड़ दिया। परेशान थी वो बहुत। पूछ रही थी कि मन इतना क्यों भटकता है? मैं क्या जवाब देती भला? मुझे तो अपना पता था कि मैं दुखों के साथ रह रही थी, तुमने उस दुख की सौत से मिलवा दिया मुझे। मन का हवन भी शायद इसीलिए हो पाया…इक दिन तन का भेद भी मिट जाएगा।

जैसे स्वप्न सत्य होता है, विसर्जित होने के बाद…बूँद बनती है अतल में खोने के बाद….ठीक वैसे ही मैं औरत बनी तुमसे मिलने के बाद। मन तो मौसम सा चंचल है। सबका होकर भी किसी का नहीं होता। अभी सुबह का, अभी शाम का…अभी रुदन का तो अभी हँसी का…पर इस भौंरे को तुमने सहेज लिया। समय इतना दानी नहीं कि हर गमले में फूल खिला दे, और ना ही जिंदगी इतनी भावुक कि हर खत का उत्तर भिजवा दे, पर देखो ना, मेरे ऊपर उस रब की मेहरबानी हो ही गई।

करूणा आंटी की बात ने ना जाने क्यों मेरे सपने के दरवाज़े को खटखटा दिया…. पर तुम्हारे इश्क़ ने भी तो दस्तक दी ही है ना। अब जब ये पट खुल चुका है तो कुछ ले के जा, कुछ दे के जा…कुछ नहीं जो तुम ना हो…हर चीज में अर्थ गर तुम हो तो।

रहना हमेशा…मेरी ज़िंदगी को अर्थ देने के लिए…..

गए तो सब जाएगा……

 

4 thoughts on “मेनका

  1. बहुत ज़्यादा प्यार भी अच्छा नहीं होता… कभी अगर दामन छुड़ाना हो..तो मुश्किल हो..😊

  2. हाय रे मन; हाय रे मन के भाव और हाय रे तुम, इस भाव के आधार।
    काश, इस मन के अपने ही दो भाग होते। एक दूसरे से लड़ते झगड़ते,
    मुंह मोड़ते फिर गले पड़ते। ना बियोग का डर ना ही बेवफाई का।
    फिर ना तुम्हारे ‘होने’ का मतलब होता ना इस अनचाही सौत का कोई डर।
    ।।।।। जाओ मेरे मन का दूसरा भाग बन के या फिर 🙏।।।।।

    अपने साथ जीने का मजा ही कुछ और है।
    समर्पण और पराधीनता में फर्क है और प्यार
    ‘हमारा’ पराधीन कत्तई नहीं, अपने मन का भी नहीं….

  3. Maan ko bandh k rakhna bhut mushkil hai….yeh ek lauti hai jis pe koi lagam nahi. Azad hai..toh udne do bhai😆

    I love the way you express everything.👏👌👍

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