अभी बाकी है


बीत ना जाए कहीं शब ये बातों में, तारों को देखने की ललक अभी बाकी है

जहां निगाहों को कहीं कुछ ना दिखे, वहां जुगनू की चमक अभी बाकी है

 

मुझे देख तेरा ख़ामोश मुस्कुराना, कैसी हो ये सवाल पूछ जाना

कभी डराना तो कभी समझाना, मेरी उलझी सांसो को फिर सुलझाना

देने को तो बहुत देते हो तुम, फिर भी बहुत से उन्स अभी बाकी हैं…

 

बातों ही बातों में मुझको फंसाना, ‘मैं हूँ ना’ कहकर फिर प्यार जताना

उंगलियों में उलझ मेरा होंठ दबाना, चुपके से तेरा मेरे हाथ सहलाना

एक छोटी सी उम्र गुज़रती है उस पल, इक लम्बी ज़िंदगी अभी बाकी है…

 

नासमझदार भी मेरा समझदार बनना, तुमको हमेशा ही पागल कहना

अपनी बातों में लाकर मुझे अटकाना, शरारत से मेरी नकल उतारना

जीते हैं हम इक बचपने को लेकर, बड़प्पन का एहसास आना अभी बाकी है…

 

तुम्हारे मतलब के खेल में मेरा अटक जाना, हाँ ना के लफ़्ज़ों में मेरा फंसे रह जाना

अच्छा लगता है तुम्हारा हम्म्म्म्म कह जाना, चुप्पी के साथ सब सुनते जाना

कहना सुनना तो बहुत हुआ है हममें, पर कई शब्द कहने अभी बाकी हैं…

 

मैं बावली हूँ ये बतला जाना, खुद को ज्ञानी जतला जाना

मेरे शब्दों में खुद को ढूंढ़ जाना, बेपरवाह सा अक्स झलका जाना

प्यार तो पहले भी हम कर चुके होंगे, पर अनकहे कई अरमां अभी बाकी हैं…

 

तुझे तो है जाना ये खुद को समझाना, तेरे रुकने की उम्मीद से खुद को बहलाना

ज़माना क्या सोचेगा ये भूल जाना, है मुझे भी इजाज़त ये खुद को समझाना

गर सोच का ये पौधा पाप से सींचा है, तो सुन लो की कई गुनाह अभी बाकी हैं…

 

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