ज़रूरी सोच को दिखाती है ‘सेक्शन 375’


2012 में हुए निर्भया केस के बाद कानून को बहुत मजबूत बनाने की कोशिश की गई। फायदे नुकसान के साथ ‘मी टू’ मूवमेंट जब आया था, तब भी हंगामा मच गया था। कई सेलिब्रिटीज़ भी इसका शिकार हुए थे। बहुतों के ऊपर आरोप साबित ही नहीं हो पाए। ऐसे ही विषय को बताने के लिए अजय बहल ने फ़िल्म बनाई है – ‘सेक्शन 375, मर्ज़ी या ज़बरदस्ती’। IPC की धारा 375, अपने आप में बहुत कॉम्प्लीकेटेड है and at the same time, its very sensitive also. अजय बहल ने बहुत समझदारी और गंभीरता से इस मर्ज़ी और ज़बरदस्ती वाले मुद्दे को दिखाया है।

कहानी एक फेमस डायरेक्टर रोहन खुराना (राहुल भट्ट) की है, जिसके ऊपर जूनियर कॉस्ट्यूम डिज़ाइनर अंजलि दांगले (मीरा चोपड़ा) ने रेप करने का आरोप लगाया है। रोहन की तरफ से ये केस हाई प्रोफाइल लॉयर तरुण सलूजा (अक्षय खन्ना) लड़ते हैं और अंजलि के लिए ये केस पब्लिक प्रॉसिक्यूटर हिरल गॉंधी (ऋचा चड्ढा) लड़ती हैं। रोहन और अंजलि में से कौन सच बोल रहा है और कोर्ट अपना क्या फैसला सुनाती है, इस मूवी हॉल में देखना इंट्रेस्टिंग होगा।

अजय बहल की इस मामले में तारीफ करनी होगी कि कोर्ट रूम ड्रामा को उन्होंने बहुत ही रोचक तरीके से पेश किया है। एक ऐसे मुद्दे को उठाया है, जो बहुत सारे लोगों को बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देगा और शायद डरने पर भी। दो अलग नज़रिये को पेश किया गया है। ऐसे टॉपिक को समझदारी के साथ दिखाना बहुत ज़रूरी है, नहीं तो ज़रा सी भी गड़बड़ी पासा पलट सकती है, अजय बहल इसमें कामयाब रहे हैं। हॉं, कोर्टरूम में मराठी और इंग्लिश में भी बहुत डायलॉग्स हैं, नहीं समझने वालों को परेशानी हो सकती है। कई जगह डायलॉग्स रिपीटेड लगते हैं तो कुछेक लाइन्स दिमाग में रह जाएंगी, जैसे- ‘कानून न्याय नहीं है, यह सिर्फ उसे पाने का हथियार है’।

अक्षय खन्ना की एक्टिंग में मुझे कभी शक नहीं रहा। यहॉं भी डिफेस लॉयर के रोल में वो पूरी तरह जमे हैं। उनकी वो नॉटी स्माइल और उसके साथ उनके सटायर्स अच्छे लगे हैं। कहीं कहीं वो ज़्यादा सीरियस टाइप भी लगे हैं, पर शायद वो उनके कैरेक्टर की डिमांड थी। ऋचा चड्ढा ने खुद को बैलेंस करने की बहुत कोशिश की है, पर कई जगह उनके एक्सप्रेशन्स और डायलॉग डिलीवरी सपाट सी लगी है। राहुल भट्ट और मीरा चोपड़ा ठीक से निभाया है और जज के रोल में किशोर कदम और कृतिका देसाई भी सही लगे हैं।

अच्छी बात ये है कि फ़िल्म में गाने नहीं है। अगर आप भी एक ऐसे मुद्दे को देखना चाहते हैं, जहॉं एक साथ दो नज़रियों की बात की जाती है, जहॉं ये दिखाया गया है कि एक महिला सच भी बोल सकती है और कानून का फायदा भी उठा सकती है तो इस फ़िल्म को देखिए। अगर आपको कोर्ट रूम ड्रामा पसंद है, तब भी आप इसे एक बार तो देख ही सकते हैं।

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