हंसाते हुए अच्छा मैसेज देती है ‘ड्रीम गर्ल’


आयुष्मान खुराना का नाम आता है तो मेरे दिमाग में सबसे पहली चीज़ जो आती है, वो ये कि बंदा कुछ भी कर सकता है। डायरेक्टर्स भी शायद ऐसी ही बात सोचते होंगे। इसकी वजह ये है कि आयुष्मान को जितने अलग अलग किरदार मिले हैं, वो उसको निभाने में ना डरे हैं, ना झिझके हैं और ना ही, किसी एक किरदार में फंस कर रह गए हैं। ऑडियंस भी ऐसा ही सोचती है कि आयुष्मान खुराना की फ़िल्म है, कोई बात तो ज़रूर होगी। अबकी बार आयुष्मान बन कर आए हैं ‘ड्रीम गर्ल’।

कहानी करम (आयुष्मान खुराना) की है, जिसके पास एक निराला टैलेंट है कि वो लड़की की आवाज़ बहुत अच्छे से निकाल लेता है। रामलीला में सीता का रोल करता है पर घर पर लोन की वजह से नौकरी की तलाश में भी है। एक दिन करम को ‘फ्रेंडशिप कॉल सेंटर’ में अपने इसी हुनर की वजह से काम मिलता है और करम बन जाता है पूजा। पहले अख़बारों मे ऐसे नंबर दिए जाते थे, जिन पर कॉल रेट्स बहुत महंगी होती थी, पर लोग लड़की से बात करने के लिए घंटों फोन पर ही रहते थे। तो बस, करम उर्फ पूजा के बात करने का तरीका ही ऐसा है कि कॉल सेंटर को वो फायदा होने लगा, जो वहॉं काम कर रही किसी लड़की की वजह से भी नहीं हो रहा था। नतीजा ये होता है कि कुछ क्लाइंट्स पूजा के प्यार में पड़ जाते हैं।क्या होता है इन दिलजलो का हाल, इसके लिए फ़िल्म देखिए।

डायरेक्टर राज शांडिल्य ने ‘कॉमेडी सर्कस’ और ‘कॉमेडी नाइट्स विथ कपिल’ के लिए स्क्रिप्टिंग की है तो कॉमेडी पंचलाइनर्स इस फ़िल्म में भी पूरे मिलेंगे। कहीं कहीं ज़रूर लग सकता है कि इतना स्ट्रेच करने की क्या ज़रूरत थी। लोगों के अकेलेपन की बात कही गई है, पर उसे डिटेल में दिखाया नहीं गया है। शायद कॉमेडी फ़िल्म बनाने के चक्कर में राज ने खुद को उस सीरियस इश्यू से साइड लाइन कर लिया। पर बात येभी है कि अकेलेपन के चक्कर में लोग पूजा से बात करते हैं तो दुखी रहने वाले लोगों को हंसाने के लिए राज ने ‘ड्रीम गर्ल’ दे दी है।

आयुष्मान हर बार की तरह इस बार भी छा गए हैं। समझ में नहीं आता कि करम को ज़्यादा नंबर दूं या पूजा को। पूजा के रूप में उनके एक्सप्रेशन्स, उनकी बॉडी लैंग्वेज, डायलॉग डिलीवरी कमाल की है। कहीं भी उन्होंने अपने एक्सप्रेशन्स को वल्गर नहीं होने दिया है। कॉमिक टाइमिंग परफेक्ट है उनकी। बिना किसी डायलॉग के, सिर्फ अपने एक्सप्रेशन से भी वो हंसा सकते हैं। आयुष्मान के पिता के रोल में अन्नू कपूर ने भी तीर पूरी तरह निशाने पर मारा है। गजब टैलेंट है उनमें। उर्दू बोलने वाले सीन में वो पूरी तरह छा गए हैं। बहुत हंसाया है उन्होंने। फुल पैसा वसूल परफॉर्मेंस। नुसरत भरुचा के हिस्से बहुत कुछ था नहीं, पर जो था, उन्होंने अच्छा किया। विजय राज की शायरी और एक्टिंग दोनों ही जबरदस्त है। मनजोत सिंह का काम अच्छा रहा है। हमेशा रहने वाले दोस्त के रोल मे वो जमे हैं। राज भंसाली, अभिषेक बनर्जी, राजेश शर्मा, निधि बिष्ट का काम भी फ़िल्म में अच्छा रहा है। दादी के रोल में नीला मुल्हेरकर ब्राउनी प्वाइंट्स ले गई हैं। 2-3 सीन में वो दिखी हैं, पर उसमें ही वो पूरी तरह छा गई हैं।

तीन गाने हैं, जो पूरी तरह फिट होते हुए गुज़र जाते हैं। दिल का टेलिफोन और राधे राधे तो ज़बान पर चढ़ेगा। तो कुल मिलाकर साफ सुथरी, एंटरटेन करने वाली फ़िल्म है। कहीं भी फूहड़पन नहीं है। पूरी फैमिली के साथ इसे देखिए और अच्छे से मैसेज के साथ मुस्कुरा कर बाहर आइए।

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