किसी फ़िल्म को बनाते हुए नीयत अच्छी हो, थोड़ी बहुत स्क्रिप्ट भी हो पर डायरेक्शन कमज़ोर हो, तो वो फ़िल्म बनती है ‘सैटेलाइट शंकर’।
डायरेक्टर इरफान कमल की फ़िल्म ‘सैटेलाइट शंकर’ इंडियन आर्मी के एक जवान शंकर की कहानी है, जिसे उसकी बटालियन ‘सैटेलाइट शंकर’ कहकर बुलाती है क्योंकि शंकर के पास बचपन में उसके पिता का दिया हुआ एक डिवाइस है, जिसे चलाकर वो कई आवाजें निकाल सकता है। शंकर को अपनी मॉं की ऑंखों का ऑपरेशन करवाना है, इसलिए वो छुट्टी के लिए अर्जी लगाता है, जो मंज़ूर हो जाती है और उसे 8 दिनों की छुट्टी मिल जाती है। उसके बाकी फौजी भाई भी उसको कुछ कुछ सामान देते हैं अपने घर देने के लिए। अब इन 8 दिनों में शंकर किस तरह अपनी मॉं से मिलकर वो अपने आर्मी बेस में रिपोर्ट करता है, यही फ़िल्म की कहानी है।
इस फ़िल्म का टॉपिक हटकर है, जिसे बहुत अच्छा बनाया जा सकता था, पर डायरेक्शन की कमी ने ये होने नहीं दिया। सूरज को बहुत ज़्यादा हीरो बनाने पर फोकस किया गया, जिसकी वजह से कहानी में और कुछ रह नहीं गया। हॉं, फ़िल्म में अलग अलग जगह और उनकी भाषा इंट्रेस्टिंग लगती है। फर्स्ट हाफ बहुत अपील नहीं करता, सेकेंड हाफ में कहानी स्पीड लेती है। सूरज पंचोली और मेघा आकाश का रोमांस अच्छा लगता है। इंटरनेट फायदेमंद भी है और खतरनाक भी, इस बात को भी अच्छे से दिखा दिया गया है फ़िल्म में। फ़िल्म का मैसेज बहुत पॉज़ीटिव था, पर वो उस तरह निकलकर नहीं आ पाया। हालांकि फौजियों की ज़िंदगी, उनके साथ होता व्यवहार, उनकी सैलरी जैसी छोटी छोटी बातों को दिखाने की कोशिश की गई है। सिनेमेटोग्राफी और एडिटिंग ठीक है फ़िल्म की पर सबके बावजूद डायरेक्शन की कमी ने सब बिगाड़ दिया।
सूरज पंचोली की ‘हीरो’ के बाद यह दूसरी फ़िल्म है। काम उनका अच्छा है। मेहनत भी उनकी पूरी दिख रही है। उनके काम में ईमानदारी दिखी है। मेघा आकाश बहुत ही क्यूट लगी हैं। ये उनकी पहली बॉलीवुड फ़िल्म है और काम उनका अच्छा रहा है। तमिल मिक्स्ड हिन्दी सुनने में अच्छी लगती है। हालांकि रोल कम था, पर वो उतने में ही जम गई। पॉलोमी घोष ने भी अपने कैरेक्टर को सही तरीके से निभाया है।ऑनलाइन रिपोर्टर के रोल में वो अच्छी लगी हैं।
म्यूज़िक ठीक ठाक सा है फ़िल्म का पर कोई भी गाना याद नहीं रहने वाला है। सिंपल सी फ़िल्म है, जहॉं बहुत लड़ाई की बातें नहीं दिखाई गई हैं। अच्छी बातें दिखाई गई हैं फ़िल्म में, जिसे देखकर ये ख़्याल आता है कि अगर सब ऐसे हो जाए तो कितना अच्छा हो जाए। दिमाग लड़ाने पर मुश्किल होती है, पर दिल से सोचो तो सब अच्छा लगता है। छोटी सी लव स्टोरी अट्रेक्ट करती है।
अब सवाल कि क्यों देखें, तो कई जगह निराशा हाथ लगेगी। कोशिश अच्छी थी, पर नतीजा बहुत अच्छा नहीं रहा। अगर आप दिमाग से नहीं सोचते हैं तभी इस फ़िल्म को देखिए।