‘मोतीचूर चकनाचूर’ रिव्यू


ज़माने से नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी का मन था कि वो एक रोमांटिक फ़िल्म बनाए, जिसमें वो हीरो हों, साथ में एक हिरोइन हो और हो कुछ रोमांटिक सीन्स। जनाब की आरज़ू पूरी की देबामित्रा बिस्वाल ने, अपनी फ़िल्म ‘मोतीचूर चकनाचूर’ के ज़रिए।

एक तरफ है 36 साल का पुष्पेन्दर (नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी), जो 3 साल बाद दुबई से वापस अपने घर आया है और शादी के लिए लड़की ढूंढ रहा है। उसका मानना है कि ‘नाटी, काली, पतली, टकली- किसी से भी हम बियाह कर लेंगे, हमको बस मौड़ी चाहिए’। दूसरी तरफ है कॉलेज जाने वाली अनिता उर्फ ऐनी (आथिया शेट्टी), जिसे शादी तो करनी है पर एक एनआरआई लड़के से क्योंकि उसकी दोस्त शादी के बाद विदेश सैटेल है और अनिता को भी अपनी विदेशी फोटो सोशल मीडिया पर डालकर शो ऑफ करना है। मज़ेदार बात ये है कि दोनों पड़ोसी हैं। क्या होगा अंजाम, जब एक काला-छोटा लड़का, एक लंबी गोरी लड़की से टकराएगा, यही इसकी कहानी है।

ट्रेलर देखकर जो उम्मीदें फ़िल्म से लगी थी, वो सब चकनाचूर हो गई। दो परिवारों की कहानी दिखाती ये फ़िल्म एक कॉमेडी फ़िल्म है, जिसमें बहुत मज़ा नहीं आता। कुछेक जगह हंसी आती भी है। जैसे एक सीन में लड़की नवाज़ से पूछती है कि क्या मैं आपको पसंद हूं तो नवाज़ का ये डायलॉग कि पसंद की बात तो जाने ही दीजिए। आप लड़की हैं और हम लड़के हैं, शादी के लिए इतना काफी है, शायद हंसा भी जाए पर उससे कुछ ख़ास बात बन नहीं पाई। नवाज़ को देखकर आथिया का ये कहना कि इसके सैलरी के दिन खत्म और पेंशन के दिन आने वाले हैं, नहीं हंसाता। कई डायलॉग्स फनी हैं पर कुछ बहुत बासी। नवाज़ के भाई का इंग्लिश लैटर पढ़ने वाला सीन मज़ेदार है। कुछ कुछ डायलॉग्स फनी होने की बजाए चीप हो गए हैं। बॉडी शेमिंग वाले डायलॉग्स भी हंसाने की बजाए दुखी ही करते हैं। डायरेक्टर ने कई मुद्दे उठाने की कोशिश की, जैसे दहेज वाला मुद्दा पर वो कोई बहुत छाप नहीं छोड़ पाया। बैकग्राउंड म्यूज़िक कहीं कहीं अच्छा है पर गाने निराश करेंगे।

नवाज़ुद्दीन की एक्टिंग में शक नहीं। 36 साल का बंदा, जो शादी करने के लिए बेताब है, नवाज़ ने इस रोल को अच्छे से निभाया है। कोई भी लड़की चलेगी की तड़प उन्होंने अच्छे से दिखाई है। आथिया शेट्टी का काम ठीक रहा है। उनकी पहली फ़िल्म ‘हीरो’ से तो काफी बेहतर, पर बहुत मेहनत करनी पड़ेगी। इसके अलावा विभा सिंह, करुणा पांडे, नवनी परिहार, संजीव वत्स और अभिषेक रावत का काम भी अच्छा है।

अब बात कि क्यों देखें, तो भोपाल की सिंपल सी कहानी है, जो बहुत इंप्रेस नहीं करती पर एक बार देखी जा सकती है। नवाज़ के ज़बरदस्त वाले फैन हैं, तब भी आप ये देख सकते हैं।

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